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१२० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
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वर्ष " सम्यक चरित्र यन्त्र " " की प्रतिष्ठा भी हुई । इनकी निषेधिका आँवा में है । १५१८ ई० के पश्चात् धर्मचन्द्र के काल में कई ग्रन्थों को प्रतिलिपियाँ तैयार की गई । १५३२ ई० में मूलसंघ के श्रावक तालू और वालमीता के द्वारा " सम्यक् दर्शन यन्त्र" और " षोडषकारण यन्त्र' का प्रतिष्ठा समारोह करवाया गया । १५३६ ई० में साह पासा और हेमा ने "अरहम-यन्त्र स्थापित करवाया । भट्टारक धर्मचन्द्र ललितकीर्ति और चन्द्रकीति के काल में अनेकों ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ मूलसंघ के श्रावकों ने तैयार करवाई | चन्द्रकीर्ति ने १५८४ ई० में साहमोका", साहकालू, साहचेला' और साहरत्ना' को उपदेशों से प्रेरित कर क्रमशः " सम्यक् दर्शन यन्त्र", " ऋणकार यन्त्र', 'करकंडु पार्श्वनाथ यन्त्र", और " दशलक्षण यन्त्र " की प्रतिष्ठा करवाई । यही नहीं, १५९१ ई० में थानसिंह ने पावापुरी में " षोडषकारण यन्त्र" की प्रतिष्ठा चन्द्रकीर्ति के उपदेश से करवाई । १५९१ ई० में ही चोखा ने अपने कुटुम्ब के साथ “सम्यक् चरित्र यन्त्र" और " सम्यक् ज्ञान यन्त्र" स्थापित करवाया ।
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( ख - २ ) नवीन संप्रदाय व पंथ :
१. तारण पंथ या समैया पंथ - दिगंबर संप्रदाय में यह एक अमूर्तिपूजक वर्ग है । लोकाशाह की तरह इन्होंने भी मूर्ति पूजा की भर्त्सना की । यह पंथ तारण स्वामी के द्वारा प्रारम्भ किया गया । तारण स्वामी का जन्म १४४८ ई० और मृत्यु १५१५ ई० में हुई । तारणपंथी केवल अपने १४ शास्त्रों की पूजा करते हैं, अतः यह पंथ सिख अनुयायियों जैसा प्रतीत होता है । ये १४ शास्त्र तारण स्वामी ने स्वयं लिखे थे । इस पंथ के अनुयायी एक सरस्वती मन्दिर निर्मित करवा कर उसमें प्रतिमा के स्थान पर शास्त्रों को स्थापित करते हैं । इनका जाति भेद में भी विश्वास नहीं है तथा शूद्रों और मुसलमानों को भी इस पंथ में प्रवेश की अनुमति थी । तारण स्वामी का स्वयं एक
१. जैइरा, अन्य लेख ।
२. वही, पृ० ८० ।
३. वही, पृ० ८० ।
४. वही, अन्य लेख ।
५. वही, पृ० ८१ ।
६. वही, पृ० ८१ ।
७. वही, अन्य लेख ।
८. वही, अन्य लेख । ९. वही, अन्य लेख । १०. वही, अन्य लेख ।
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