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जैनधर्म भेद और उपभेद . ११९ प्रतिमा शुभचन्द्र के उपदेश से बनवाई।' १५५१ ई० में शान्तिनाथ प्रतिमा तथा १५५० ई० में ज्ञान निर्वाण समारोह इन्हीं के उपदेशों से सम्पन्न हुए।२ १५६३ ई० में सुमतिकीर्ति के उपदेश से पद्मप्रभु की मूर्ति स्थापित हुई। इन्होंने ही मुनि सुव्रत और अनन्तनाथ' की प्रतिमाएँ क्रमशः १५६२ ई० और १५७० ई० में स्थापित करवाई। ईडर के आसा ने अपनी पत्नी और पुत्री के साथ नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई।६ मौजीपुरा के श्वेताम्बर जैन मन्दिर की शीतलनाथ प्रतिमा के १५९७ ई० के लेख में मूलसंघ के वादिभूषण का उल्लेख है। चित्तौड़ के प्रसिद्ध जैन कीर्ति स्तम्भ का प्रतिष्ठा समारोह भट्टारक धर्मचन्द्र के द्वारा सम्पन्न हुआ। बिजौलिया में एक प्रस्तर स्तम्भ के एक पाश्वं में भट्टारक पद्मनन्दी और दूसरी तरफ शुभचन्द्र का नाम उत्कीर्ण है । आँवा में शुभचन्द्र की निषेधिकाएँ हैं। भट्टारक जिनचन्द्र के समय में १४५० ई० के पश्चात् विपुल साहित्य सृजित हुआ। १४६० ई० में मूलसंघ के श्रावक हरराज ने एक चौबीसी प्रतिष्ठित करवाई। १४६६ ई० में एक प्रतिष्ठा समारोह भी सम्पन्न हुआ ।' पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का स्थापना समारोह १४८५ ई० में शुभचन्द्र के द्वारा सम्पन्न हुआ। १४६१ ई० में रावल शिवसिंह के शासनकाल में मन्दासा स्थान पर जीवराज पापड़ीवाल ने इन्हीं के निर्देशों पर कई प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करवाया।° १५१४ ई० में शुभचन्द्र ने एक यंत्र की प्रतिष्ठा करवाई।११ आंवा में जिनचन्द्र की निषेधिका उपलब्ध है।
१५१८ ई० में प्रभाचंद्र की प्रेरणा से बाई पार्वती ने "यशोधर चरित्र" को प्रति लिखवाकर उनको भेंट में दी ।१२ उन्होंने कई प्रतिमाओं और यन्त्रों की प्रतिष्ठा १५१५ ई० में करवाई। प्रभाचन्द्र के उपदेश से १५१६ ई० में "चारण यन्त्र"१3 और इसी १. जैइरा, पृ० ७६ । २. वही। ३. वही, पृ०७७। ४. नाजैलेस, क्र. १६३६ । ५. वही, क्र० ६३१ । ६. अने० १३, पृ० १२६ । ७. प्रोरिआसवेस, १९०४-५, पृ० ५७ । ८. जैइरा, पृ० ७८। ९. वही, अन्य लेख । १०. वही, अन्य लेख। ११. वही, अन्य लेख । १२. प्रस, पृ० १६३ । १३. बैहरा, पृ०७१।
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