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११८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म भट्टारकों का योगदान :
मध्यकालीन भट्टारकों ने धर्म, साहित्य एवं संघ यात्राओं के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसके कतिपय उदाहरण इस प्रकार हैं । १४०० ई० में पद्मनन्दी के उपदेश से प्रतिमा स्थापित की गई। १४१३ ई० में विल्हण और उसके पुत्र ने विशालकीर्ति के द्वारा कई मूर्तियाँ स्थापित करवाई। इन्हीं के उपदेश से असपाल ने १४१५ ई० में पाश्वनाथ की प्रतिमा बनवाई। इस प्रतिमा का प्रतिष्ठा समारोह इनके शिष्य नेमीचन्द्र द्वारा आपा ने करवाया। आबू के दिगम्बर जैन मन्दिर की प्रतिमा के १४३० ई० के लेख में सकलकीर्ति का नामोल्लेख है।५ इन्हीं के उपदेशों से १४३३ ई० में आदिनाथ चौबीसी और १४३५ ई० में चंपा ने शान्तिनाथ प्रतिमा बनवाई। १४४३ ई० में त्रिमूर्ति का स्थापना समारोह मूलसंघ के भुवनकीर्ति के द्वारा करवाया गया । १४५५ ई० में सारा के पुत्र नाहया के द्वारा इनके उपदेशों से "दशलक्षण यन्त्र" की प्रतिष्ठा तथा १४५९ ई० में इसी वंश के सूरा के द्वारा प्रतिष्ठा समारोह करवाया गया। चापा और उसकी पत्नी गंगा ने १४७१ ई० में एक यन्त्र का स्थापना समारोह मनाया ।१० १३७७ ई० में मूलसंघ के ज्ञानभूषण ने एक यन्त्र प्रतिष्ठित करवाया, जो उदयपुर के जैन मन्दिर में है। इन्होंने ही १३८७ ई० में महावीर प्रतिमा भी स्थापित करवाई।" १५१३ ई० में विजयकीर्ति के उपदेश से श्रेष्ठी मेला ने आदिनाथ के समवशरण की प्रतिष्ठा करवाई।१२
१५१५ ई० से १५५६ ई० के मध्य मूलसंघ के आचार्यों की प्रेरणा से विपुल साहित्य सृजित हुआ। १५३८ ई० में धन्नादे और उसकी पत्नी ने पार्श्वनाथ की धातु
१. नाजलेस, क. १००९ । २. वीरवाणी-७। ३. अने० १३, पृ० १२६ । ४. वही। ५. जैनप्रस, भूमिका, पृ० १० । ६. जैइरा, पृ० ७५ । ७. अने० १३, पृ० १२६ । ८. जयपुर के जैन मन्दिर में । ९. जैइरा, पृ० ७६ । १०. जैइरा, पृ० ७६ । ११. अने० १२, पृ० १२६ । १२. बैदरा, पृ० ७६ ।
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