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११६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म दिल्ली-जयपुर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक चित्तौड़ सहित' :
१. पद्मनन्दी के शिष्य शुभचन्द्र ( १३९३ ई०-१५४० ई० ) ने दिल्ली में इस शाखा को प्रारम्भ किया। ये ५६ वर्ष पट्टारूढ़ रहे। २. जिनचन्द्र ( १४५० ई०१५१४ ई० ) ३. प्रभाचन्द्र ( १५१४ ई०-१५२३ ई० )-इनके गुरुभाई रत्नकोति ने १५२४ ई० में नागौर में गादी स्थापित की। ४. धर्मचन्द्र-१५१८ ई० में भट्टारक हुए, इन्होंने १५२४ ई० में गादी चित्तौड़ में स्थानांतरित कर ली। ५. ललितकीर्ति १५४६ ई०-इनके काल में गादी आमेर स्थानांतरित हो गई। ६. चन्द्रकीर्ति ने १५७५ ई० में चातसू में गादी स्थानान्तरित की।
१३वीं से १६वीं शताब्दी तक मूल संघ की उक्त गादियों के भट्टारकों ने विविध प्रतिष्ठा कार्य, मूर्ति स्थापना एवं साहित्य सृजन करवाया। सवाई माधोपुर के विमलनाथ मन्दिर के आदिनाथ चतुर्विशति पट्ट के १२६३ ई. के लेख में केवल "मूलसंघ" का उल्लेख है । मालपुरा के मुनि सुव्रत मन्दिर की आदिनाथ पंचतीर्थी के १३२३ ई० के लेख में भी केवल "मूलसंघ" का उल्लेख है। जयपुर के पंचायतो मन्दिर स्थित पंचतीर्थी के १४०५ ई० के लेख में "मूलसंघ के पद्मनन्दी देव गोमाराडान्वय" का उल्लेख है।४ सांगानेर स्थित महावीर मन्दिर की संभवनाथ पंचतीर्थी के १४२३ ई० के लेख में “मूलसंघ, सरस्वती गण कुंदकुंदाचार्यान्वय" वर्णित है।" संभवतः १५वीं शताब्दी से ही मूलसंघ के साथ अन्वय, आम्नाय, संघ, गण, गच्छ जोड़ने की परम्परा प्रारम्भ हुई।
अजमेर के संभवनाथ मन्दिर के पद्मप्रभु चतुर्विशति पट्ट के १४३३ ई० के लेख में "मूलसंघ के नन्दि संघ, बलात्कार गण, सरस्वती गच्छ कुन्दकुन्दाचार्यान्वय" के भट्टारक पद्मनन्दी द्वारा प्रतिष्ठा का उल्लेख मिलता है। भेंसरोडगढ़ केसरियानाथ मन्दिर की वासु-पूज्य पंचतीर्थी के १४४२ ई० के लेख में मूलसंघ के पद्मनन्दो अन्वय के सकलकीर्ति के शिष्य भुवनकीति द्वारा प्रतिष्ठा का वर्णन है। इसी प्रकार कोटा के माणिक्य सागर मन्दिर की शान्तिनाथ पंचतीर्थी के १४६८ ई० के लेख में मूलसंघ के भुवनकीर्ति
१. जैसेस्कू, पृ० ९८ । २. प्रलेस, क्र० ७४ । ३. प्रलेस, क्र० १२० । ४. वही, क्र० १८७ । ५. वही, क्र० २२६ । ६. वही, क्र० २७८ । ७. वही, क्र० ३३१ ।
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