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जैनधर्म भेद और उपभेद : ११५
भट्टारक गादियों का स्थानान्तरण :
पूर्वोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मूल संघ के आचार्यों की गादी बारी से चित्तौड़ व बघेरा, वहाँ से अजमेर तथा अजमेर से ईडर स्थानान्तरित हुई और भट्टारक गादी बन गई। भट्टारक पद्मनन्दो (१३२८ ई०-१३९३ ई०) के ३ शिष्यों से ३ शाखाएँ अस्तित्व में आई-१. शुभचन्द्र से दिल्ली-जयपुर शाखा, २. सकलकीति से ईडर शाखा और ३. देवेन्द्रकीति से सूरत शाखा । दिल्ली शाखा में शुभचन्द्र (१३९३ ई०-१४५० ई०) के पश्चात् जिनचन्द्र (१४५० ई०-१५१४ ई०), इनके पश्चात् प्रभाचन्द्र (१५१४ ई०) हये । प्रभाचन्द्र के काल में १५१५ ई० में दिल्ली से यह गादी चित्तौड़ आ गई। प्रभाचन्द्र के गुरु भाई रत्नकीर्ति ने इसी समय नागौर की गादो पृथक् से स्थापित कर ली। नागौर में पुनः मतभेद उभरने पर एक भाग तो अजमेर चला गया व दूसरा नागौर में ही रहने लगा । इसी प्रकार चित्तौड़ से प्रभाचन्द्र के उत्तराधिकारी चन्द्रकीर्ति के समय गादी चातसू स्थानान्तरित हुई। इसके बाद यह क्रमशः सांगानेर, आंवा, आमेर और अन्त में जयपुर स्थानान्तरित हो गई। ईडर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक' :
१. पद्मनन्दी-उत्तर शाखा २. सकल कीर्ति (१३९३ ई०-१४५३ ई०) ३. भुवन कीर्ति (१४५१ ई०-१४७० ई०) ४. ज्ञान भूषण (१४७७ ई०-१५०३ ई०) इनके समय में ज्ञानकीति ने भानपुरा शाखा पृथक् से स्थापित की। ५. विजय कीर्ति (१५०० ई०१५११ ई०) ६. शुभचन्द्र (१५१६ ई०-१५५६ ई०) ७. सुमतिकीर्ति (१५६५ ई०१५६८ ई०) ८. गुणकीर्ति (१५७४ ई०-१५८२ ई०) वादिभूषण (१५९५ ई०१५९९ ई०)। नागौर शाखा के मध्यकालीन भट्टारकर
१. जिनचन्द्र के काल में दिल्ली-जयपुर शाखा से चित्तौड़ में पृथक् होकर स्थापना २. रत्लकीर्ति १५२४ ई० ३. भुवनकीर्ति १५२९ ई० ४. धर्मकीर्ति १५३३ ई० ५. विशाल कीति १५४४ ई० ६. लक्ष्मीचन्द्र १५५४ ई० ७. सहस्त्र कीर्ति १५७४ ई० ८. नेमीचन्द्र १५९३ ई०।३ अजमेर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक :
१. विशालकीर्ति १२०९ ई० २. शुभकीर्ति ३. धर्मचन्द्र १२१४ ई० ४. रत्नकीर्ति १२३९ ई० ५. प्रभाचन्द्र १२५३ ई०-ये दिल्ली में रहे । इनके पश्चात्वर्ती पद्मनंदी से ईडर शाखा प्रारम्भ हुई। १. जैसेस्कू, पृ० १०५ । २. वही, पृ० १००। ३. वही, पृ० १०१ ।
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