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________________ ११४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं इसी समय बघेरा में धर्मांतरण के कारण बघेरवाल अस्तित्व में आये तथा ११वीं शताब्दी में बघेरा में जैन मन्दिर निर्मित हुए จ ७८वें आचार्य बसन्तकीर्ति से हो यह गादी १२०८ ई० के लगभग अजमेर स्थानां - तरित हो गई । इस तथ्य की सभी पट्टावलियाँ - पुष्टि करती हैं । बसन्तकीर्ति का पट्टाभिषेक १२०७ ई० में हुआ । श्रुतसागर सूरि के अनुसार मुसलमानों के दुर्व्यवहार कारण इन्होंने ही दिगम्बर साधुओं के लिये चर्या के समय शरीर आच्छादन का प्रावधान मंडपदुर्ग ( मांडलगढ़) में किया था । ये बघेरवाल जाति के अजमेर निवासी थे । बिजौलिया अभिलेख में भी इनका उल्लेख है । इनके पश्चात् १२०९ ई० में विशालकीर्ति पट्टधर हुए । विशालकीर्ति के पश्चात् शुभकीर्ति पट्टधर हुए । बिजौलिया अभिलेख में इनका दूसरा नाम दमनकीर्ति भी दिया हुआ है ।" शुभकीर्ति ने १२१३ ई० में कई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई। इनके उत्तराधिकारी १२१४ ई० में धर्मचन्द्र हुए, जो हुम्बड़ जातीय अजमेर निवासी थे । १२३९ ई० में इनके पट्टधर रत्नकीर्ति हुये, जो १४ वर्षों तक रहे । ये भी हुम्बड़ जातीय अजमेर निवासी थे । इनके पश्चात् १२५३ ई० से १३२७ ई० तक प्रभाचन्द्र पट्टधर रहे । प्रभाचन्द्र के पश्चात् १३२८ ई० से १३९३ ई० तक पद्मनन्दी पट्टधर रहे । ४ पट्टावलियों के अनुसार १३२८ ई० में पद्मनन्दी से ही यह गादी अजमेर से दिल्ली स्थानान्तरित हो गई । किन्तु ५वीं पट्टावली से प्राप्त सही जानकारी के अनुसार यह ईडर में स्थानान्तरित हुई, क्योंकि पद्मनन्दी बागड़ प्रदेश से सम्बन्धित थे । बागड़ के एक श्रावक ने अजमेर के प्रभाचन्द्र द्वितीय को प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हेतु निमंत्रित किया । उनके न आ सकने के कारण पद्मनन्दी को ही सूरिमंत्र दे दिया गया और श्रावक ने उन्हें भट्टारक की उपाधि प्रदान की । इस प्रकार ईडर में १३२८ ई० में प्रथम भट्टारक पद्मनन्दी हुये जो १३९३ ई० तक रहे । भट्टारक शब्द से अभिप्राय उन विशेष दिगम्बर जैन सन्यासियों से है, जो मुनियों से विपरीत एक तरह से धार्मिक शासकों की तरह से होते थे और धार्मिक मामलों में इनकी सर्वोच्च सत्ता होती थी । १. एइ, २४, पृ० ८४ ( बिजौलिया अभिलेख, श्लोक ८२-८३) । २. जैसेस्कू, पृ० ९५ । ३. वही । ४. एइ, २४, पृ० ८४ । ५. वही । ६. जैसे स्कू, पृ० ९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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