SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म भेद और उपभेद : १०७. ९०. भरतरिपुर गच्छ-मेवाड़ में पूर्व मध्यकाल में उत्पन्न इस गच्छ का १३वीं शताब्दी के एक अभिलेख में उल्लेख है।' ९१. रतनपुरिया गच्छ--मूल रूप से यह मडाहड गच्छ को शाखा है। मेवाड़ में रतनपुर में यह एक पृथक् गच्छ हो गया। उदयपुर के जैन मंदिर की धातु प्रतिमा के १४५३ ई० के लेख में इसका वर्णन मिलता है ।२ . ९२. भीमपल्लीय गच्छ-भीमपल्ली नामक गाँव से पूर्णिमा गच्छ की यह शाखा उत्पन्न हुई । जोधपुर से प्राप्त १५४१ ई० के अभिलेख में इसका वर्णन है ।' ९३. जापदाना गच्छ--इसका उल्लेख नागौर के १४७७ ई० के अभिलेख में. मिलता है। ९४. तावदार गच्छ-जोधपुर के मुनि सुव्रत मन्दिर में १४४२ ई० के प्रतिमा लेख में इस गच्छ का नाम है। ९५. वातपोय गच्छ-जैसलमेर से प्राप्त १२८१ ई० के लेख में इस गच्छ का उल्लेख है। ९६. सरवाला गच्छ---यह गच्छ भी १३वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र में अस्तित्व में रहा प्रतीत होता है। ९७. चंचला गच्छ-जयपुर से प्राप्त १४७२ ई० के अभिलेख के अनुसार इस गच्छ के ब्रजेश्वर सूरि के द्वारा पद्मप्रभु की प्रतिमा स्थापित की गई थी। ९८. प्राया गच्छ-यह एक स्थानीय गच्छ था। १३१७ ई० के उदयपुर से प्राप्त लेख में इस गच्छ का उल्लेख है। ९९. निथ्थति गच्छ-मेवाड़ क्षेत्र के १४३९ ई० के लेख में इसका उल्लेख है ।१० १००. बेगड खरतर गच्छ-यह गच्छ धर्म बल्लभ, जिनका एक नाम जिनेश्वर सूरि भी था, के द्वारा १३५५ ई० में प्रारम्भ किया गया था। इस गच्छ के जिनचन्द्रसूरि १. एरिराम्यूअ, १९२३, क्र० ९ । २. प्रालेस, क्र० ४९, १२४ एवं २५६ । ३. नाजैलेस, क्र० ६०४ । ४. वही, क्र० १२८८ । ५. वही, क्र० ६१६ । ६. जैइरा, पृ० ६८ । ७. नाजलेस, ३, क्र० २२२०, २२२१, २२२२ आदि । ८. वही, क्र० ११५९ । ९. जैइरा १०६८।। १०. नाजैलेस, क्र० १०७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy