SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म ७९. हुम्मड़ गच्छ-यह गच्छ १५वीं शताब्दी में उदयपुर क्षेत्र में अस्तित्व में था।' ८०. पालीकोय गच्छ-प्रकारान्तर से पाली नगर से सम्बन्धित इस गच्छ का उल्लेख १४२५ ई० के लेख में है। ८१. पुरन्दर गच्छ-यह गच्छ वृहत्तपा गच्छ से उत्पन्न हुआ । रेनपुर, मेवाड़ से प्राप्त १४३९ ई० के लेख में इस गच्छ का सन्दर्भ दिया गया है। ८२. कुतुबपुरा गच्छ-यह तपागच्छ की एक शाखा थी जो, १६वीं शताब्दी में मारवाड़ में प्रचलन में थी। इसकी उत्पत्ति कुतुबपुरा से हुई। ८३. ज्ञानकप्प गच्छ-जयपुर से प्राप्त १४४४ ई० के अभिलेख में इस गच्छ का उल्लेख है।" ८४. तावकीय गच्छ या ज्ञानकीय गच्छ-सम्भवतः ज्ञानकीय गच्छ को इस रूप में पढ़ लिया गया है । नाणा से प्राप्त १४४८ ई० के लेख में इस गच्छ का उल्लेख है।६ ८५. नागपुरीय गच्छ-इस गच्छ की उत्पत्ति नागपुर या नागौर से हुई। ८६. उद्योतनाचार्य गच्छ—पाली ( मारवाड़ ) से प्राप्त अभिलेख में इसका उल्लेख है। इसी लेख में इसकी उत्पत्ति पल्लिकीय गच्छ से बताई गई है। ८७. सागर गच्छ-यह तपागच्छ से राजसागर सूरि द्वारा पृथक् किया गया । ओसिया से प्राप्त लेख में इसका सन्दर्भ मिलता है। ८८. चंद्र गच्छ-इस गच्छ की उत्पत्ति चन्द्रकुल से हुई । अभिलेखीय प्रमाणों के अनुसार यह सिरोही राज्य में १४३५ ई० में भी अस्तित्व में था। १० ८९. हस्तिकुण्डी गच्छ-इसकी उत्पत्ति हस्तिकुण्डी मारवाड़ में हुई। उदयपुर से प्राप्त १३९६ ई० के लेख में इसका वर्णन है।" १. नाजलेस, ३, क्र० १०५९ । २. वही, १, क्र०८२५ब । ३. वही, ३, क्र० ७०० । ४. वही, १, क्र० १४९-१५१ । ५. वही, २, क्र० ११४३ । ६. वही, १, क्र० ८८७ । ७. वही, २, क्र० १६०६ । ८. वही, १, ८२५ । ९. वही, क्र० ३०४ । १०. अप्रजैलेस । ११. प्रालेस, क्र. ४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy