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( १२ ) (स) उत्तर मध्यकाल ५३
(१) मेवाड़ में जैन धर्म ५३ (२) डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़ राज्यों में जैन धर्म ५५ (३) कोटा क्षेत्र में जैन धर्म ५५ (४) सिरोही क्षेत्र में जैन धर्म ५६ (५) जैसलमेर क्षेत्र में जैन धर्म ५७ (६) जोधपुर एवं बीकानेर राज्यों में जैन धर्म ५८ (७) जयपुर राज्य में जैन धर्म ६० (८) अलवर राज्य में जैन धर्म ६३ । (द) मुस्लिम शासक और जैन धर्म ६४
(१) मुसलमानों द्वारा किया गया विध्वंस ६४ (२) मुस्लिम शासकों की जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता ६९ । अध्याय ३ : जैनधर्म के भेद और उपभेव
७६-१६१ पृष्ठभूमि : ७६
(अ) चैत्यवासी प्रथा ७८ (१) श्वेताम्बर सम्प्रदाय में चैत्यवासी प्रथा ७८ (२) दिगम्बर सम्प्रदाय में चैत्यवासी प्रथा ८० ।
(ब) भेद एवं उपभेद ८१; प्रयुक्त शब्दावली ८२; गण, गच्छ ८२ कुल, शाखा ८२।
(१) पूर्वमध्यकाल
(क) श्वेताम्बर सम्प्रदाय के भेद-प्रभेद ८३ (क-१) प्रवर्तमान गच्छ ८३।
(ख) दिगम्बर सम्प्रदाय में भेद-प्रभेद ८८ (ख-१) प्रवर्तमान संघ ८८ १. मूलसंघ ९०; २. माथुरसंघ ९३; ३. लाडवागड़ संघ ९४ ।
(२) मध्यकाल ९४
(क) श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भेद-प्रभेद ९४ (क-१) प्रवर्तमान गच्छ ९४ (क-२) नवीन सम्प्रदाय व पन्थ १०८; १. लोका सम्प्रदाय १०८; २. बीजामत या विजयगच्छ १०९; ३. कडुआ मत १०९ (ख) दिगम्बर सम्प्रदाय में भेद-प्रभेद ११० (ख-१) प्रवर्तमान संघ ११०; १. काष्ठा संघ ११०; काष्ठा संघ के लाड़बागड़ गच्छ के मध्यकालीन आचार्य १११; काष्ठासंघ के बागड़गच्छ के मध्यकालीन आचार्य ११२, काष्ठासंघ के नंदी तट गच्छ के मध्यकालीन आचार्य ११२; २. देवसेन गच्छ ११३; ३. मूलसंघ ११३; भट्टारक गादियों का स्थानान्तरण ११५; ईडर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक ११५; नागौर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक ११५; अजमेर शाखा के मध्यकालीन भट्टारक ११५; दिल्ली जयपुर शाखा चित्तौड़ सहित के मध्यकालीन भट्टारक ११६; भट्टारकों का योगदान ११८ (ख-२)
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