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१०२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
४०. चित्रावाल गच्छ-इस गच्छ के उल्लेख के १४४४ ई०, १४४६ ई०, १४४८ ई०, १४५१ ई० व १४५६ ई० के मूर्ति लेख उपलब्ध हैं।
४१. चित्रावाला धारापद्रीय गच्छ-दो गच्छों के सम्मिश्रण से निर्मित इस गच्छ का नाम नागौर के महात्मा जेठमल उपाश्रय में मुनि सुव्रत पंचतीर्थी के १५०४ ई० के लेख में प्राप्त होता है ।
४२. छहितरा गच्छ-जयपुर में सुमतिनाथ मंदिर की अनंतनाथ पंचतीर्थी पर १५५५ ई० के लेख में इस गच्छ का सन्दर्भ दिया गया है।
'४३. जाखडिया गच्छ-इस गच्छ का उल्लेख नागौर के बड़ा मंदिर की शीतलनाथ पंचतीर्थी के १४७७ ई० के लेख में है।
४४. जालोहरीय गच्छ-मालपुरा के मुनि सुव्रत मन्दिर की पार्श्वनाथ पंचतीर्थी के लेख में इस गच्छ का उल्लेख है ।"
४५. डेकात्रीय गच्छ-कोटा में चन्द्रप्रभु मन्दिर की पार्श्वनाथ पंचतीर्थी पर १३५१ ई० के लेख में इस गच्छ का नाम है।
४६. द्विवंदनीक गच्छ-इस गच्छ का उल्लेख १३९० ई०, १४६६ ई० और १४६८ ई० के प्रतिमा लेखों में देखने को मिलता है।
४७. नागर गच्छ-इस गच्छ की उत्पत्ति राजस्थान के प्राचीन नगर “नगर" के नाम पर हुई । इस गच्छ का नामोल्लेख केकड़ी के चन्द्रप्रभु मन्दिर की पार्श्वनाथ पंचतीर्थी पर अंकित है, जो १२३६ ई० का है।
४८. नागोरी तपागच्छ-तपागच्छ की यह शाखा नागौर में अस्तित्व में आई। १४९४ ई० के एक मूर्ति लेख में इसका उल्लेख प्राप्त है।
४९. नाणकोय या ज्ञानकोय गच्छ-इसकी उत्पत्ति नाणा नामक प्राचीन तीर्थ से हुई । इस गच्छ का उल्लेख नाणकीय नाम से १२५३ ई० से १४७३ ई० के मध्य के ४
१. प्रलेस, क्र. ३४६, ३७०, ३९७, ४३४, ५०५ । २. वही, क्र० ९१३ । ३. वही, क्र० १०१० । ४. वही, क्र० ७७३। ५. वही, क्र० २३ । ६. वही, क्र० १४६ । ७. वही, क्र० १७३, ३७२, ६५२ । ८. वही, क्र० ५७ । ९. वही, क्र०८६५।
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