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जैनधर्मं भेद और उपभेद : १०१
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- इस गच्छ का उल्लेख १२९२ ई० से १५८० ई० तक के
३१. भावडार गच्छ
लगभग २५ मूर्ति लेखों में उपलब्ध होता है' |
३२. मडाहड गच्छ — इस गच्छ का उद्भव मदाहद या मदार नामक स्थान से हुआ । इस गच्छ के १३१० ई० से १५२६ ई० तक के ९ मूर्ति लेख सिरोही राज्य से उपलब्ध होते हैं ।
३३. मडाड रत्नपुरीय गच्छ - इस गच्छ के नामोल्लेख के १४२८ ई०, १४४४ ई० व १५०० ई० के लेख प्राप्त हैं ।
३४. मल्लधारी गच्छ— इस गच्छ के उल्लेख के १४०१ ई० से १५२७ ई० तक के ३० प्रतिमा लेख सिरोही राज्य में उपलब्ध होते हैं ।
३५. विमल गच्छ — इस गच्छ के नामोल्लेख का एक मूर्तिलेख सिरोही क्षेत्र में लुआणा के जैन मन्दिर में अजितनाथ पंचतीर्थी पर मिला है ।
३६. संडेरक गच्छ — पूर्व मध्यकाल उद्भूत में इस गच्छ का उल्लेख १२११ ई० से १५३१ ई० तक के ३८ मूर्ति लेखों में भी मिलता है ।
३७. सरस्वती गच्छ — इस गच्छ के उल्लेख वाले १४५६ ई० व १५६३ ई० के प्रतिमा लेख सिरोही राज्य के धराद गाँव में प्राप्त हैं ।
३८. सिद्धान्ति गच्छ - इस गच्छ के १४४४ ई० से १५४१ ई० तक के ७ मूर्ति लेख देखने को मिलते हैं ।"
३९. चित्रापल्लीय गच्छ - इस गच्छ के नामोल्लेख का १२७७ ई० का प्रतिमा लेख जयपुर पंचायती मंदिर की पंचतीर्थी पर अंकित है ।
१४६० ई० का उत्कीर्ण देखने को
१. श्री जैप्रलेस, क्र० २०, ११३; १७६,२५५, १५०, २३५, १२४, एवं प्रलेस, क्र० १६९, ३४२, ३६२, ५४५, ५७८, ५८३ आदि ।
२. श्री जैप्रलेस, क्र० ३३४, १०३, प्रलेस, क्र० २१०, ६०३, ६७२, ७८८, ७८९
आदि ।
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१६२, ८८, १५७, ९, १९१,
३६३, ४०२, ४६३, ५२७,
३. प्रलेस, क्र० २५३, ३३९, ८९१ ।
४. श्री जैप्रलेस, क्र० २९२ब, एवं प्रलेस, परि० २, पृ० २२७ ॥
५. श्री जैप्रलेस, क्र० ३५९ ।
६. वही, क्र० २०८ एवं प्रलेस, परि० २, पृ० २२८ ।
७. श्री जैप्रलेस, क्र० १७४, २६४ ॥
८. वही, क्र०४, १५३, १४५, २५२, १९, २१२, एवं प्रलेस, क्र० ९९९ ।
९. प्रलेस, क्र० ८६ ।
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