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________________ जैनधर्म भेद और उपभेद : १०३ मूर्ति लेखों और ज्ञानकीय नाम से १४४४ ई० से १५०४ ई० तक के ११ मूर्ति लेखों में देखने को मिलता है। ५०. नाणावाल गच्छ-इस गच्छ की प्रसिद्धि भी नाणा तीर्थ के नाम से हुई । इसके उल्लेख के १४७२ ई० से १५१३ ई० तक के ७ प्रतिमा लेख प्राप्त होते हैं। ५१. पल्लो गच्छ-~पाली नगर से यह गच्छ उत्पन्न हुआ। १३७८ ई० से १५१८ ई० तक के ११ लेखों में इसका नाम देखने को मिलता है । ५२. पल्लीवाल गच्छ-इस गच्छ की उत्पत्ति पल्लीवाल जाति से सम्बन्धित है । इसके नामोल्लेख के १४५३ ई० से १५२६ ई. तक के ५ प्रतिमालेख उपलब्ध होते हैं ।४ ५३. काशद्रह गच्छ-कोटा के खरतरगच्छ आदिनाथ मन्दिर में १५६५ ई० के प्रतिमा लेख में इस गच्छ का नाम उपलब्ध है। ५४. पिप्पल गच्छ-इस गच्छ का उत्पत्ति स्थान अज्ञात है। इसका उल्लेख १४५९ ई०, १४७३ ई० और १४८० ई. के मूर्ति लेखों से प्राप्त होता है। ५५. पिप्पलगच्छेतलाजीय-हरसूली के पार्श्वनाथ मन्दिर की सुमतिनाथ पंचतीर्थी पर इस गच्छ का नामोल्लेख है। ५६. पिप्पलगच्छे त्रिभवीया-पिप्पल गच्छ से सम्बद्ध इस शाखा का उल्लेख १४१९ ई०, १४६७ ई० और १४६८ ई० के प्रतिमा लेखों में देखने को मिलता है।' ५७. वृहद गच्छे जिनेरावटंके-नागौर बड़ा मन्दिर की सुविधिनाथ पंचतीर्थी पर १४५६ ई० के लेख में वृहद गच्छ की इस शाखा का उल्लेख है। ५८. वृहदगच्छे जीरापल्ली गच्छ-सम्भवतः यह जीरापल्ली में विकसित वृहदगच्छ की एक शाखा है। सवाई माधोपुर के विमलनाथ मन्दिर में मनि सुव्रत पंचतीर्थी के १४६२ ई० के लेख में इस गच्छ का नाम है ।१० १. प्रलेस, क्र० ६८, ८९, १३९, ३०१ एवं ३४९, ३८१, ४६७, ५१९, ६७५, ६९७ आदि। २. वही, क्र० ७१३, ७८३, ८१९, ९३०, ९३२, ९३४, ९४३ । ३. वही, क्र० १६२, १७७, १८३, २६१, २६२, १९७, ४३०, ७५९,८६३, ९०१, ९५६ । ४. वही, क्र० ४७०, ४७२०, ७२३, ८२३ एवं ९७३ । ५. प्रलेस, क्र० १०२१ । ६. वही, क्र० ५५३, ७२३, ८१३ । ७. वही, क्र० ७७८ । ८. वही, क्र० २१७, ६४०, ६७७ । ९. वही, क्र. ५१४ । १०. वही, क्र० ५९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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