________________
जैनधर्म भेद और उपभेद : ९९ तीर्थ कोरटा से हई । इस गच्छ का नामोल्लेख विविध क्षेत्रों से प्राप्त १३३५ ई० से १५११ इं० तक की १८ मूर्तियों के लेखों में उपलब्ध हआ है।
१७. जगदेव संतानीय गच्छ-सिरोही राज्य में धराद से प्राप्त २ मूर्तियों१४६५ ई० और १५२६ ई०२ तथा जीराउला से प्राप्त १३६४ ई० की प्रतिमाओं के लेखों में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है।
१८. काछोली गच्छ-सिरोही राज्य के काछोली गांव से इस गच्छ को उत्पत्ति हुई। इसी गाँव की १२४६ ई० की एक प्रतिमा के लेख में इस गच्छ के मेरू मुनि का नाम है।
१९. चैत्रगच्छ-चैत्रगच्छ का नामोल्लेख १२५२ ई० से १५२५ ई० तक की २२ मतियों के अभिलेखों में दृष्टव्य है।
२०. जीरापल्ली गच्छ-सिरोही राज्य के जीरापल्ली तीर्थ (जीराउला) के नाम से यह गच्छ प्रसिद्ध हुआ। इस गच्छ का नाम सिरोही राज्य से प्राप्त १३५४ ई० से १४७० ई० तक के ६ मूर्तिलेखों तथा साथां में प्राप्त वासुपूज्य पंचतीर्थी के १४२६ ई० के लेख में मिलता है।
२१. जीराउला गच्छ-पूर्वोक्त गच्छ का अपभ्रंश रूप ही जीराउला गच्छ है । इसके उल्लेख वाले १४९२ ई० व १५०० ई० के अभिलेख द्रष्टव्य हैं।
२२. वृहत्तपा या वृद्धतपा गच्छ—यद्यपि अभिलेखीय प्रमाणों के आधार पर यह तपागच्छ से भी प्राचीन है, किन्तु विवेच्य काल में इसका तपागच्छ में विलय हो गया प्रतीत होता है । राजस्थान में यह बहुत लोकप्रिय गच्छ था, जिसकी पुष्टि अधिक संख्या में प्राप्त अभिलेखों से होती है । राजस्थान के विविध क्षेत्रों की १४२४ ई० से १५८० ई० के मध्य की प्रतिष्ठित ६३ मूर्तियों के लेखों में इसका उल्लेख द्रष्टव्य है ।१०
१. प्रलेस, परि० २, पृ० २२३ एवं श्री जैप्रलेस क्र० ७, २०५ । २. श्री जैप्रलेस, क्र० ४० । ३. वही, क्र० १०। ४. वही, क्र० ३०३ अ । ५. वही, क्र० ३३२ । ६. प्रलेस, परि० २, पृ० २२४ तथा श्री जैप्रलेस, क्र० १०६, ६७, १७, १५५, ३७,
२१३, २६७ । ७. श्री जैप्रलेस, क्र० ३०९, ३१०, ९९, ६२, २६६, १३८ । ८. प्रलेस, क्र० २४५ ।। ९. प्रलेस, क्र० ८५५ एवं ८९२ । १०. श्री जैप्रलेस, पृ० ४३-४५ की तालिका ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org