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९८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
८. पूर्णिमा पक्षे वटपद्रीय-पूर्णिमा गच्छ से संबंधित रही इस शाखा का उल्लेख १४६६ ई० की सांगानेर के महावीर मंदिर को मूर्ति के लेख में मिलता है।'
९. उपकेश गच्छ-उपकेश नगर ( ओसिया ) से उत्पन्न इस गच्छ का नामोल्लेख १२८७ ई० से १५३५ ई० तक की ५८ प्रतिमाओं के लेखों में देखने को मिलता है।
१०. कृष्णषि गच्छ--इस गच्छ का उल्लेख १४१६ ई०, १४४४ ई०, १४६७ ई० और १४७७ ई० के मूर्ति लेखों में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त सिरोही क्षेत्र में १४२६ ई० की २ मूर्तियों में भी इसका उल्लेख द्रष्टव्य है।४
११. कृष्णषि तपा गक्ष-तपागच्छ की इस शाखा का उल्लेख १४२६ ईस्वी, १४५० ईस्वी, १४६८ ईस्वी, १४७३ ईस्वी और १४७७ ईस्वी के प्रतिमा लेखों में देखने को मिलता है।"
१२. कोमल गच्छ ---इस गच्छ का नाम देरासर के जड़ाऊ पाश्वनाथ मन्दिर की अजितनाथ पंचतीर्थी के १४७७ ई० के लेख में उपलब्ध होता है।
१३. खडायथ गच्छ-सिरोही आदिनाथ मन्दिर के चतुर्विंशति पट्ट के १२३६ ई० के अभिलेख में इस गच्छ का उल्लेख है।
१४. खरतर गच्छ-मध्यकाल में यह गच्छ राजस्थान का सर्वाधिक लोकप्रिय गच्छ था । मध्यकाल में इस गच्छ के आचार्यों द्वारा अनेक प्रतिमाएं स्थापित करवाई गईं । राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के १२५१ ई० से १५९९ ई० तक के १५२ प्रतिमालेखों में इस गच्छ के आचार्यों व श्रावकों का नामोल्लेख देखने को मिलता है।
१५. खरतर मधुकर गच्छ—यह खरतर गच्छ की एक शाखा थी। मेड़ता के धर्मनाथ मन्दिर को शीतलनाथ पंचतीर्थी पर अंकित १४९०ई० के लेख में इस गच्छ का उल्लेख है।
१६. कोरंट गच्छ-इस गच्छ की उत्पत्ति राजस्थान के प्राचीन नगर व जैन १. प्रलेस, क्र० ६२६ । २. वही, परि० २, पृ० २२२ । ३. वही, क्र० २११, ३५१, ६४८, ७८२ । ४. श्री जैप्रलेस, क्र. २८८, २९१ । ५. प्रलेस, क्र० २४१, ४१६, ६५९, ७२२, ७८० । ६. वही, क्र० ७७०। ७. वही, क्र० ५६ । ८. वही, परि० २, पृ० २२३ एवं श्री जैप्रलेस ३३९, १३६, ६६, ७३, ९७, ४८,
८४, ७२। ९. प्रलेस, क्र०८४८ ।
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