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________________ ( १० ) शोधप्रबंध के लेखन में जैन मान्यताओं की तुलना में अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाणों को प्राथमिकता दी गई है। यद्यपि जैन स्रोतों में व्यापक सूचनाएँ सन्निहित हैं, किन्तु एकमात्र इन्हीं का आश्रय लेकर राजस्थान के लौकिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से सम्बन्धित अन्य स्रोतों व कृतियों की भी उपेक्षा नहीं की गई है । कर्नल टॉड, श्यामलदास, गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, मुशी देवी प्रसाद, रामनाथ रतनू , जगदीश सिंह गहलोत, पंडित गंगा सहाय, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ० रघुवीर सिंह, हर विलास शारदा, डॉ. सत्यप्रकाश, डॉ० मथुरालाल शर्मा, डॉ० दशरथ शर्मा, डॉ० गोपीनाथ शर्मा, डा० वी० एस० भार्गव प्रभृति विद्वानों की राजस्थान से सम्बन्धित शोधपरक एवं अन्य कृतियों से भी जैन धर्म के इतिहास विषयक तथ्यों का संकलन किया गया है। राजस्थान के जैन धर्म सम्बन्धी लेखन के लिये पूर्णचन्द्र नाहर, मनि कांतिसागर, मुनि जिनविजय, मुनि पुण्यविजय, महो० विनयसागर, मुनि हस्तीमल, श्री अगरचन्द नाहटा, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, डॉ० नरेन्द्र भानावत, डॉ. कैलाशचन्द जैन एवं रामवल्लभ सोमाणी आदि सुविख्यात हैं । इनकी रचनाओं एवं कृतियों की सामग्री का भी यथोचित उपयोग किया गया है । कतिपय विदेशी लेखकों ने भारतीय जैन धर्म का अच्छा अध्ययन करके अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । इनमें कनिंघम, फग्य्स न, हर्मन जेकोबी, बुहलर, शुबिग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके अभिमतों को भी यथावश्यक प्रयुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त अर्वाचीन शोध विषयक प्रकाशित सामग्री, नवशोधित तथ्यों, इतिहास परक निबन्धों, शोध ग्रन्थों, नवीन साहित्यिक व ऐतिहासिक रचनाओं, ख्यातों, रास व गोतों, स्मृति ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित विभिन्न लेखों आदि से भी उपयोगी सामग्री ली गई है । ____ नवीन तथ्यों की गवेषणा करने, प्रकाशित तथ्यों की प्रामाणिकता का अभिज्ञान करने तथा जैन धर्म के पार्थिव प्रतिमानों के प्रत्यक्ष अवलोकन के निमित्त, लेखिका के द्वारा राजस्थान के विविध क्षेत्रों का भ्रमण एवं सर्वेक्षण भी एतदर्थ किया गया और तद्विषयक कतिपय प्राथमिक तथ्यों का भी संकलन किया गया है, जिन्हें विषय की आवश्यकतानुसार यथास्थान निरूपित कर दिया गया है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोधसंस्थान के निदेशक डॉ० सागरमल जैन ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन का दायित्व वहन किया एतदर्थ मैं उनके एवं संस्थान के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ। डा० (श्रीमती) राजेश जैन For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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