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८६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
लौटते समय एक तालाब के किनारे साँड व शेर के युद्ध में, सांड को विजयी देखकर, गाँव व गच्छ का नाम संडेरा रखा गया। यह गच्छ राजस्थान के विभिन्न भागों में प्रसारित हुआ। १२वीं शताब्दी में नाडौल में यह अस्तित्व मे था।' इस गच्छ के शान्तिसूरि ने ११४७ ई० में सिरोही राज्य में धराद में पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा स्थापित करवाई।
५. मल्लधारी गच्छ-इस गच्छ के प्रीतिसूरि के उल्लेख का महावीर मुछाला (घाणेराव) में ११५७ ई० का लेख उपलब्ध है।
६. ब्रह्माण गच्छ—यह गच्छ सिरोही राज्य में ब्रह्माणक (वरमाण तीर्थ) से उत्पन्न हुआ। इस गच्छ के प्रद्युम्न सूरि का ११६० ई० का धराद में और ११८५ ई० का सिरोही के वरमाण तीर्थ में उल्लेख प्राप्त है। इसी गच्छ का उल्लेख ११६६ ई० के सिरोही के अजितनाथ मन्दिर के एक प्रतिमा लेख में भी है।
७. निवृत्ति गच्छ-निवृत्ति कुल एवं शेखर सूरि के उल्लेख का १०७३ ई० का लेख लोटाणा तीर्थ से प्राप्त होता है ।
८. बृहत्तपा गच्छ-इस गच्छ के हेमचन्द्राचार्य का उल्लेख, ११६३ ई० के सिरोही राज्य में धराद के एक प्रतिमा लेख में प्राप्त होता है। इस गच्छ को तपागच्छ की एक शाखा माना जाता है। किन्तु तपागच्छ के १२२८ ई० में उत्पन्न होने से पूर्व भी यह अस्तित्व में था। सम्भवतः मध्यकाल में इस गच्छ के आचार्य तपागच्छ में सम्मिलित हो गये । इस गच्छ का नाम “वृद्धतपा" भी देखने को मिलता है ।
९. वायट गच्छ :-इस गच्छ का उत्पत्ति स्थल अज्ञात है । सिरोही में अजितनाथ मन्दिर में १०७८ ई० के प्रतिमा लेख में इस गच्छ का उल्लेख है।'
१०. पारा गच्छ :-इस गच्छ की उत्पत्ति मालवा में धारा नगरी में हुई माना
१. प्रालेस, क्र० ५ एवं २३ । २. श्री जैप्रलेस, क्र० १७३ । ३. वही, क्र० ३२४ । ४. वही, क्र० २०० । ५. वही, क्र० ३२८ । ६. प्रलेस, क्र० ३२ । ७. श्री जैप्रलेस, क्र० ३१८ । ८. वही, क्र० ८५ । ९. प्रलेस, क्र० ७ ।
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