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प्रमाणमीमांसा की बौद्ध-जैन- परम्परा
संक्षिप्त सूत्र ग्रंथ परीक्षामुख तैयार किया । परीक्षामुख पर अकलङ्क के टीकाकार विद्यानन्द का भी प्रभाव है, किन्तु वादिराज (१०२५ ई०) का नहीं है। दरबारी लाल कोठिया परीक्षामुख के टीकाकार प्रभाचन्द्र को माणिक्यनन्दी का साक्षात् शिष्य अंगीकार करते हैं । २५१ 1 प्रभाचन्द्र का समय १०१० से १०८० ई० निर्धारित किया गया है, तदनुसार कोठिया जी ने माणिक्यनन्दी को ९९३ ई० से १०५३ ई० के मध्य सिद्ध किया है और उनकी रचना परीक्षामुख का समय १०२८ ई. अनुमानित किया है । परीक्षामुख में छह परिच्छेद हैं, जिनमें क्रमशः प्रमाणलक्षण, प्रत्यक्षस्वरूप, परोक्ष-स्वरूप, प्रमाण-विषय, प्रमाण - फल एवं आभासों का वर्णन है। ग्रंथकार ने इसमें जैनन्याय विषयक सामग्री को व्यवस्थित रूप में सूत्रात्मक शैली में संजोया है।
परीक्षामुख पर अनेक बृहत् एवं लघुकाय टीकाएं रची गयीं, जिनमें प्रभाचन्द्र विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड सर्वाधिक प्रसिद्ध है। अन्य टीकाएं हैं- लघु अनन्तवीर्य रचित प्रमेयरत्नमाला चारुकीर्ति रचित प्रमेयरत्नालंकार तथा शान्तिवर्णी विरचित प्रमेयकण्ठिका |
वादिराज (१०२५ ई०)
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अकलङ्क रचित न्यायविनिश्चय के विवरणकार वादिराजसूरि हैं। वादिराज सूरि के समय की सूचना उनके पार्श्वनाथचरित्र से मिलती है। उन्होंने यह रचना शक सं० ९४७ में कार्तिक शुक्ला तृतीया को पूरी की थी । २५२ चालुक्यनरेश जयसिंहदेव की राजसभा में इनका बड़ा सम्मान था । इस आधार पर वादिराज को १०२५ ई० के आस पास निश्चित किया जाता है। वे प्रसिद्ध वैयाकरण, तार्किक, कवि एवं भव्यसहाय थे । न्यायविनिश्चयविवरण - यह अकलङ्क के न्यायविनिश्चय पर वादिराज का प्रसिद्ध विवरण है । वादिराज इसमें अकलङ्क कृति का अर्थ बहुत गहराई से पकड़ते हैं। वे एक ही श्लोक के चार पांच अर्थ निकालना सहज बात समझते हैं। वादिराज ने सिद्धिविनिश्चय के टीकाकार अनन्तवीर्य से प्रेरणा ग्रहणकर न्यायविनिश्चय के गूढ अर्थ को प्रकट किया है, ऐसा उन्होंने स्वयं ग्रंथारम्भ में निर्देश किया
है
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वादिराजसूरि का न्यायविनिश्चयविवरण बीस हजार श्लोकपरिमाण है । यह एक महान् न्यायग्रंथ है । इसमें पूर्वपक्ष के रूप में कुमारिल, प्रभाकर, मण्डनमिश्र, व्योमशिव, भासर्वज्ञ आदि के मन्तव्यों को रखकर उनका निरसन किया गया है। सबसे अधिक धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्तिक एवं उस पर
२५१. आप्तपरीक्षा, प्रस्तावना, पृ० ३३
२५२. पार्श्वनाथचरित, प्रशस्ति, ५, उद्धृत, न्यायविनिश्चयविवरण, प्रस्तावना, पृ० ६३
२५३. वादिराजमनु शाब्दिकलोको वादिराजमनुतार्किकसिंह: ।
वादिराजमनु काव्यकृतस्ते वादिराजमनु भव्यसहायः ॥ एकीभावस्तोत्र, उद्धृत, न्यायविनिश्चयविवरण
प्रस्तावना, पृ० ५८ ।
२५४. गूढमर्थमकलङ्ककवाङ्मयागाध भूमिनिहितं तदर्थिनाम् ।
व्यञ्जयत्यलमनन्तवीर्यवाग्दीपवर्तिरनिशं पदे पदे ॥ - न्यायविनिश्चयविवरण, ३
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