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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
सत्यशासनपरीक्षा एवं ६ श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र । टीका ग्रंथ हैं-१.तत्वार्थश्लोकवार्तिक २.अष्टसहस्त्री एवं ३. युक्त्यनुशासनालङ्कार । इनमें प्रमाण-चर्चा से सम्बद्ध उपलब्ध प्रमुख ग्रंथ हैं-प्रमाणपरीक्षा,
अष्टसहस्त्री एवं तत्वार्थश्लोकवार्तिक। ___सम्प्रति विद्यानन्दमहोदय अनुपलब्ध है, किन्तु इसका उल्लेख विद्यानन्द की ही अन्य कृतियों तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक एवं अष्टसहस्त्री में हुआ है । २४° स्याद्वावादरलाकर के रचयिता वादिदेवसूरि इस कृति का उल्लेख महोदय शब्द से करते हैं। २४१ इस दृष्टि से यह अनुमान होता है कि विद्यानन्दमहोदय एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रंथ रहा होगा, किन्तु अनुपलब्ध होने से उसकी सम्पूर्ण विषयवस्तु के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता।
___ आप्तपरीक्षा में आप्त के लक्षणों की ईश्वर,कपिल,बुद्ध एवं ब्रह्म में परीक्षा कर अर्हन में आप्तत्व निर्धारित किया गया है तथा अर्हन् को सर्वज्ञ भी सिद्ध किया गया है । इसमें कुल १२४ कारिकाएं हैं जिन पर स्वयं विद्यानन्द की स्वोपज्ञटीका आप्तपरीक्षालकृति है। विषयवस्तु की दृष्टि से यह ग्रंथ पांच प्रकरणों में विभक्त किया गया है --१ईश्वर परीक्षा २.कपिल परीक्षा ३.सुगत परीक्षा ४.परम पुरुष परीक्षा और ५. अर्हत् सर्वज्ञ सिद्धि।
सत्यशासनपरीक्षा नामक ग्रंथ पुरुषाद्वैत,शब्दाद्वैत,विज्ञानाद्वैत आदि विभिन्न चौदह शासनों की परीक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है, किन्तु अंतिम दो शासन तत्त्वोपप्लव एवं अनेकान्त इसमें अनुपलब्ध हैं । बारहवां शासन प्रभाकर मीमांसा का है,जो भी पूर्ण प्रतीत नहीं होता है । इसमें विद्यानन्द की दृष्टि विभिन्न शासनों में सत्य की परीक्षा करने में समर्पित है।
विद्यानन्द कृत श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र , समन्तभद्र विरचित आप्तमीमांसा एवं युक्त्यनुशासन के सदृश स्तोत्रग्रंथ होते हुए भी एक तार्किक कृति है, जिसमें श्रीपुरस्थ भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति के व्याज से कपिलादिक की अनाप्तता सिद्ध की गयी है।
युक्त्यनुशासनालङ्कार समन्तभद्रीय स्तोत्रग्रंथयुक्त्यनुशासन पररचित टीका है । इसका प्रकाशन विक्रम संवत् १९७७ में माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में हुआ था,किन्तु अब वह अप्राप्य है ।
पत्रपरीक्षा में पत्रलक्षण की परीक्षा की गयी है । मौखिक वाद न होकर जब पत्र द्वारा वाद हो तो उसे संभवतः पत्र माना गया है। २४२ पत्र में विद्यानन्द ने प्रतिज्ञा एवं हेतु को अनुमान का अवयव बतलाया है । कुत्रचित् अनुमान के दश अवयवों का भी समर्थन किया गया है । इस प्रकार पत्रपरीक्षा
२४०. (१) इति परीक्षितमसकृद्विद्यानन्दमहोदये ।-तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, निर्णयसागर प्रेस, पृ० २७२
(२) अवगम्यताम् यथागमं प्रपञ्चेन विद्यानन्दमहोदयात् - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, निर्णयसागर प्रेस, पृ० ३८५
(३) इति तत्त्वार्थालङ्कारे विद्यानन्दमहोदये च प्रपञ्चतः प्ररूपितम्। अष्टसहस्री, पृ० २८९-२९० २४१. स्याद्वादरत्नाकर, पृ. ३४९ २४२. प्रसिद्धावयवं वाक्यं स्वेष्टस्यार्थस्य साधकम् ।
साधुगूढपदप्रायं पत्रमाहुरनाकुलम् ॥-उद्धृत, प्रमेयरत्नमाला, पृ० ३५२ ।
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