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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
महत्त्वपूर्ण टीका है जिसकी चर्चा आगे की जायेगी। समन्तभद्र (षष्ठ शती) ___समन्तभद्र की विचारदृष्टि भी सिद्धसेन के सदृश अनेकान्तवाद से ओत-प्रोत है । जिस प्रकार सिद्धसेन की स्तुत्यात्मक द्वात्रिंशिकाएं हैं उसी प्रकार समन्तभद्र भी स्तुतिपरक संस्कृत काव्य की रचना करते हैं । समन्तभद्र ने स्तुतिपरक काव्यों में ही दार्शनिक मन्तव्यों को गूंथ दिया है । दार्शनिक रचनाओं की दृष्टि से उनकी उपलब्ध तीन रचनाएँ प्रमुख हैं-आप्तमीमांसा , युक्त्यनुशासन एवं स्वयम्भूस्तोत्र ।८७ इनमें प्रथम दो कृतियां जैनेतर दार्शनिकों का उपस्थापन कर उनमें रही कमियों को प्रस्तुत करती हैं तथा आप्त की स्तुति करती हैं । समन्तभद्र के स्थितिकाल के सम्बन्ध में विवाद है। पं० जुगलकिशोर मुखार अनेक युक्तियां देकर इनको पूज्यपाद एवं सिद्धसेन से पूर्व दूसरी शताब्दी में रखते हैं१८८ दरबारी लाल कोठिया ने समन्तभद्र को नागार्जुन के उत्तरकालीन एवं दिइनाग के पूर्व सिद्ध किया है ।१८९ वे कुमारिल एवं धर्मकीर्ति को समन्तभद्र का आलोचक मानते हैं ।१९० इस दृष्टि से कोठिया पं० जुगलकिशोर के समर्थक है । कैलाशचन्द्र शास्त्री ने इन्हें शबरस्वामी के काल में तीसरी चौथी शती का दार्शनिक माना है ।१९१ पं० सुखलाल संघवी, दलसुख मालवणिया आदि विद्वान् द्वितीय-तृतीय शती के मन्तव्यों का खण्डन करके इनको छठी शताब्दी का दार्शनिक सिद्ध करते हैं। १९२ सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने भी ६०० ई. का समय निर्धारित किया है ।१९३ मुनि जम्बूविजय जी ने द्वादशारनयचक्र के प्राक्कथन में पृष्ठ १७ पर प्रतिपादित किया है कि समन्तभद्र ने दिइनाग के मन्तव्यों का खण्डन किया है। जो भी हो, किन्तु समन्तभद्र की रचनाओं का आन्तरिक परीक्षण इन्हें छठी शताब्दी से आगे नहीं ले जा पाता है । सिद्धसेन एवं समन्तभद्र की रचनाओं में
अनेकत्र साम्य है। दोनों स्याद्वाद एवं अनेकान्तवाद के पोषक हैं तथा विज्ञानवाद, क्षणिकवाद आदि सिद्धान्तों का खण्डन करते हैं। दोनों पर धर्मकीर्ति एवं कुमारिल भट्ट का प्रभाव नहीं है । समन्तभद्र ने भावैकान्त,अभावैकान्त,नित्यैकान्त,अनित्यैकान्त आदि का निराकरण कर अनेकान्त मार्ग से उनका समन्वय किया है। समन्तभद्र परीक्षाप्रधान आचार्य थे। आगे उनकी प्रमुख रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है। युक्त्यनुशासन-चौसठ पद्यों का युक्त्यनुशासन स्तुतिपरक काव्य होता हुआ भी युक्तिपूर्वक
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१८७. समन्तभद्र की अन्य दो उपलब्ध रचनाएँ मानी जाती हैं-स्तुतिविद्या एवं रलकरण्डश्रावकाचार । उनकी अनुपलब्ध
रचनाएं मानी गयी है-जीवसिद्धि एवं गन्धहस्तिभाष्य । १८८. स्वामी समन्तभद्र का समय निर्णय, जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, प्रथम खण्ड, पृ.६८९ से ६९७ १८९. जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, पृ० १०७ से ११८ १९०. जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, पृ० ११९ से १३३ १९१. जे-न्याय, पृ०९ १९२. सन्मतितर्कप्रकरण, प्रस्तावना 883. A History of Indian Logic, p. 183
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