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प्रमाणमीमांसा की बौद्ध-जैन-परम्परा
असङ्ग की कृति योगाचारभूमिशास्त्र ने विशेष प्रसिद्धि अर्जित की,अतः विज्ञानवाद को योगाचार दर्शन के नाम से ही जाना गया। असङ्ग के समय तक न्याय का विशेष विकास नहीं हुआ था। वे योगाचारभूमिशास्त्र में प्रत्यक्ष, अनुमान, एवं आगम ये तीन प्रमाण स्वीकार करते हैं, तथा प्रतिज्ञा,हेतु एवं दृष्टान्त इन तीन को अनुमान का अवयव अङ्गीकार करते हैं।५४
असङ्ग के योगाचारभूमिशास्त्र एवं प्रकरणार्यवाचाशास्त्र में वाद, वादाधिकरण, वादाधिष्ठान, वादालंकार,वादनिग्रह,वादनिस्सरण,वादबहुकारधर्म आदि का भी निरूपण है जो वादविद्या की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।५५ वसुबन्धु ___ असङ्ग के छोटे भ्राता वसुबन्धु का जन्म गांधार राज्य के पुरुषपुर नगर में हुआ था। ये प्रारम्भ में वैभाषिक थे,किन्तु असंग के द्वारा योगाचार (विज्ञानवाद) में दीक्षित कर दिये गये।५६ अतः इन्होंने वैभाषिक एवं योगाचार दोनों सम्प्रदायों मे लेखन कार्य किया। परमार्थ ने इनका समय ३१६ ई. से ३९६ ई० प्रतिपादित किया है । भारतीय एवं चीनी विद्वानों ने वसुबन्धु को बोधिसत्त्व कहा है । वसुबन्धु की अनेक रचनाएं हैं, जिनमें प्रमुख हैं- (१) अभिधर्मकोश एवं भाष्य (२) विंशिका (३) त्रिंशिका (४) मध्यान्तविभंगभाष्य (५) त्रिस्वभावनिर्देश (६) पंचस्कन्धप्रकरण (७) कर्मसिद्धिप्रकरण एवं (८) वादविधि।
इनमें न्यायशास्त्र से सम्बन्धित रचना वादविधि है। ५८ सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने तर्कशास्त्र नामक ग्रंथ को भी वसुबन्धु की रचना बतलाया है जो स्पष्टतः न्यायशास्त्र की चर्चा से युक्त है। विशिका एवं त्रिंशिका को विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि नाम से भी जाना जाता है । यह विज्ञानवाद का विशद विवेचन करती है । प्रस्तुत प्रसंग में वादविधि एवं तर्कशास्त्र का परिचय अपेक्षित है । वादविधि- तत्कालीन वादविद्या का सम्पूर्ण चित्र वसुबन्धु की रचना वादविधि में देखा जा सकता है। किसी तर्क के प्रामाण्य का निर्धारण कैसे हो, इसका वादविधि में सुन्दर चित्रण है। पंचावयवों में से उपनय एवं निगमन के अतिरिक्त तीन अवयवों (प्रतिज्ञा, हेतु एवं दृष्टान्त) को इसमें स्थान दिया गया है । दिङ्नाग की प्रमाणसमुच्चयवृत्ति एवं जिनेन्द्रबुद्धि की टीका में वादविधि के कुछ अंश है । वादविधि का अंग्रेजी अनुवाद स्टीफन एनेकर की पुस्तक सेवन वर्क्स आप वसुबन्धु (Seven works of Vasubandhu) में उपलब्ध है। ५४. Pre-Dignaga Texts, Introduction , pp. 17 & 19 ५५. Pre- Dignaga Texts,Introduction, p. 16 ५६. ई. फ्राउवालनर दो वसुबन्धु स्वीकार करते हैं।- धोत्तरप्रदीप, प्रस्तावना, पृ० ४५ । ५७. डॉ. महेशतिवारी ने विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि की भूमिका पृ० ४ पर वसुबन्धु की ३२ रचनाओं के नामों की गणना की है। ५८. हवेनसांग (सातवीं शताब्दी ई०) ने वसुबन्धु की वादविद्या से सम्बन्धित तीन कृतियों का उल्लेख किया है, जिनमें दो __ अभी तक अनुपलब्ध है, वे हैं १. वादमार्ग और २. वादकौशल । 48. A History of Indian Logic, pp. 267-268
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