SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा ४८ प्रयोजन एवं महत्त्व प्रतिपादित किया गया है तथा फिर आठ प्रकार के वाद धर्मों का निरूपण है । वे आठ वाद धर्म हैं- दृष्टान्त, सिद्धान्त, वाक्यप्रशंसा, वाक्यदोष, प्रमाण, प्राप्तकालवाक्य हेत्वाभास और वाक्छल । 'इन आठ ही वादधर्मों में से प्रत्येक का भेदोपभेद पूर्वक वर्णन किया गया है। उपायह में वाद का प्रारम्भ सद्धर्म की रक्षा के लिए किये जाने का विधान है न कि प्रसिद्धि अर्जित करने के लिए । ४९ १० द्वितीय प्रकरण में विभिन्न प्रकार के निग्रह स्थानों का निरूपण है। निग्रहस्थानों को इसमें वाद महाकण्टक एवं दुःखरूप बताया गया है तथा उनका शीघ्र निवारण करने का परामर्श दिया गया है । ५° तृतीय प्रकरण में निग्रहस्थान पूर्वक प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव आदि पर विचार किया गया है तथा चतुर्थ प्रकरण में जाति का विवेचन हुआ है। इस प्रकार प्रमाणशास्त्र एवं वादविद्या की दृष्टि से उपायहृदय प्राचीन बौद्ध रचनाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । मैत्रेय (३०० ई०) योगाचार दर्शन के संस्थापक आचार्य मैत्रेय ने विज्ञानवाद से सम्बद्ध अनेक कृतियों का निर्माण किया जिनमें बोधिसत्त्वचर्यानिर्देश, सप्तदशाभूमिशास्त्र, योगाचार्य एवं अभिसमयालंकारिका प्रमुख हैं। इनमें सप्तदशा भूमिशास्त्र ग्रंथ वादविद्या की सामग्री प्रस्तुत करता है । इस ग्रंथ में वाद विषय, वादाधिकरण, वाद करण आदि का निरूपण है, साथ ही आठ प्रकार के प्रमाणों का निरूपण है । वे आठ प्रमाण हैं- सिद्धान्त, हेतु, उदाहरण, साधर्म्य, वैधर्म्य, प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगम । वाद से सम्बद्ध अन्य साम्रगी में वादकर्ता की विशेषताओं, निग्रहस्थान, सभा आदि का निरूपण है । I मैत्रेय के अनुसार साध्य की सिद्धि के लिए प्रतिज्ञा को हेतु एवं दो उदाहरणों का समर्थन मिलना चाहिए | मैत्रेय ने गौतम प्रणीत उपमानप्रमाण का उल्लेख नहीं किया है। ५१ असङ्ग (३५० ई०) I असङ्ग बौद्ध विज्ञानवाद के प्रतिष्ठित आचार्य एवं वसुबन्धु के ज्येष्ठ भ्राता थे । ये ३५० ई० में विद्यमान रहे होंगे, ऐसा श्री राहुलसांकृत्यायन का मत है । ५२ आचार्य असङ्ग ने १२ कृतियों का निर्माण किया, जिनमें अधिकतर अभी भी चीनी एवं तिब्बती अनुवादों में सुरक्षित हैं । इनके प्रमुख ज्ञात ग्रंथों में महायानोत्तरतंत्र, सूत्रालङ्कार, योगाचारभूमि, बोधिसत्त्व-पिटकाववाद का नाम उल्लेखनीय है । असंग के न्याय का संक्षिप्त सार उनके प्रकरणार्यवाचा के ग्यारहवें खण्ड में मिलता है। ५३ ४८. उपायहृदय, पृ. ५ ४९. वादारम्भोपि तथैवाधुना सद्धर्मरक्षणेच्छया न तु ख्यातिलाभाय । - उपायहृदय, पृ. ४ ५०. एतानि निग्रहस्थानानि वादस्य महाकण्टकानि गम्भीरदुःखानि ज्ञेयानि द्रुतं च हेयानि । - उपायहृदय, पृ० १९ ५१. द्रष्टव्य, A History of Indian Logic, p. 263-265 ५२. दर्शन - दिग्दर्शन, पृ० ७०५ ५३. A History of Indian Logic, p. 265 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy