________________
स्मृति ,प्रत्यभिज्ञान ,तर्क एवं आगम का प्रामाण्य तथा अपोह-विचार
३२७
इस प्रकार प्रभाचन्द्र के मत में तर्क अगृहीतग्राही,संवादक एवं प्रमाण के विषय का परिशोधक होने से प्रमाण है । प्रथाचन्द्र कहते हैं कि तर्क के अभाव में साकल्य से व्याप्तिज्ञान नहीं हो सकता तथा अनुमान प्रमाण की संवादकता तर्क प्रमाण की संवादकता पर निर्भर करती है, इसलिए तर्क एक पृथक प्रमाण है । तर्क को उन्होंने अन्य प्रमाणों का अनुपाहक एवं अपनी योग्यता विशेष से प्रतिनियत अर्थ का व्यवस्थापक होने से भी प्रमाण माना है। वादिदेवसूरि की नई युक्तियां वादिदेवसूरि ने प्रभाचन्द्र एवं उनके पूर्ववर्ती जैन दार्शनिकों के तर्कों का अनुसरण करते हुए भी कुछ नवीन आशंकाएं उठायी हैं तथा उनका युक्तियुक्त निरसन कर तर्क के प्रामाण्य का बलवत् समर्थन किया है। सविकल्पक होने से तर्क अप्रमाण नहीं- बौद्धों के अनुसार तर्क विकल्पमात्र है,इसलिए उसे प्रमाण मानना युक्त नहीं है । वादिदेवसूरि इस बौद्ध मत का निरसन करते हुए बौद्धों से प्रश्न करते हैं कि विकल्पमात्र का क्या अर्थ है ? अर्थ के आलम्बन के बिना ज्ञान होना विकल्पमात्र है अथवा अप्रत्यक्ष ज्ञान विकल्प मात्र है । इनमें प्रथम पक्ष असिद्ध है,क्योंकि साध्य एवं साधन का सम्बन्ध तर्कप्रमाण का आलम्बन है अतः उसे निरालम्ब नहीं कहा जा सकता। द्वितीयपक्ष में कोई हानि नहीं है,क्योंकि तर्क को परोक्षप्रमाण का भेद होने से जैन भी अप्रत्यक्षरूप मानते हैं, किन्तु तर्क के अप्रत्यक्ष होने से उसे अप्रमाण नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि बौद्ध एवं जैन दोनों को अनुमानप्रमाण के अप्रत्यक्षज्ञान रूप होने पर भी उसका प्रामाण्य इष्ट है । यदि तर्क को विकल्प मात्र कहने का आशय उसको सविकल्पकज्ञान स्वरूप बतलाना है तो भी अनुमान के समान तर्क का प्रामाण्य बना रहता है। समस्त प्रमाण कथञ्चित् सविकल्पक होते हैं, अतः सविकल्पकता तर्क के अप्रामाण्य में निमित्त नहीं है।९८३ व्याप्ति का ग्राहक होने से तर्क का प्रामाण्य - जैनमत में तर्क प्रमाण से साध्य-साधन में व्याप्ति का ग्रहण माना गया है,जबकि बौद्ध इसे प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ के पंचक से स्वीकार करते हैं । वादिदेवसूरि ने बौद्धमत को उपस्थापित कर उसका विस्तार से खण्डन किया है तथा तर्क को विशिष्ट प्रमाण सिद्ध किया है। बौद्धों के अनुसार तीन प्रकार के हेतु मान्य हैं- (१) कार्य हेतु (२) स्वभाव हेतु एवं (३) अनुपलब्धि हेतु । इन तीनों हेतुओं में व्याप्ति ज्ञान किस प्रकार होता है यह बौद्ध पक्ष वादिदेवसरि के स्थाद्वादरत्माकार से यहां प्रस्तुत हैं। बौद्ध पक्ष - कार्यहेतु में व्याप्ति का ज्ञान प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ पञ्चक से होता है। प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ पंचक है- (१) अग्नि एवं धूम से रहित दृश्यमान भूतलादि में पहले धूम का अनुपलम्भ । (२) तदनन्तर अग्नि का उपलम्भ (३) तदनन्तर धूम का उपलम्भ (४) तदनन्तर अग्नि का अनुपलम्भ
१८३. स्यादादरलाकरपृ.५१३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org