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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
है | माध्व सम्प्रदाय के व्यासतीर्थ ने तर्क का निरूपण करने हेतु 'तर्कताण्डव' नामक ग्रन्थ की रचना कर तर्क को अनुमान प्रमाण सिद्ध किया है। उन्होंने नव्य नैयायिकों के मत का उल्लेख करते हुए कहा है कि उनके अनुसार व्याप्य के आरोप से व्यापक का आरोप तर्क है और वह प्रमाणों का अनुग्राहक तो अवश्य होता है, किन्तु प्रमाण नहीं । इस मत का खण्डन करते हुए व्यासतीर्थ ने कहा है कि तर्क को प्रमाण न मानने वाले नैयायिकों के मत में तर्क का उपयोग संभव नहीं है । '
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बौद्धदर्शन में तर्क का स्वरूप
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बौद्धदर्शन में तक्कि, विमंसी आदि शब्दों का प्रयोग अवश्य हुआ है,१५९ किन्तु तर्क की पृथक् चर्चा नहीं मिलती है । प्रोफेसर सातकड़ि मुकर्जी के शब्दों में - We have not come across any speculation on tarka in any Buddhist work. १६० बौद्ध न्याय की परम्परा में प्रसंग, प्रसंग साधन, प्रसंगापादन, प्रसंगानुमान आदि शब्दों का अवश्य व्यवहार हुआ है जो तर्क के ही निरूपक हैं। वैसे बौद्धन्याय में व्याप्ति का ग्रहण करने के लिए जो उपलम्भ एवं अनुपलम्भ के पश्चक का निरूपण किया गया है १६१ वह जैनदर्शन में प्रतिपादित तर्कप्रमाण का ही मार्ग प्रशस्त करता है। जैनों
भी उपलम्भ एवं अनुपलम्भ के निमित्त से उत्पन्न होने वाले व्याप्तिग्राहक ज्ञान को तर्क कहा है 1 बौद्धों ने इस व्याप्तिज्ञान के लिए तर्क शब्द का प्रयोग नहीं किया है, किन्तु वे इसे अनुमान प्रमाण के लिए उपयोगी अवश्य मानते हैं। जैनों ने इसे तर्क शब्द देकर अनुमान में उपकारक तो माना ही है, किन्तु पृथक् प्रमाण की संज्ञा भी दी है। जैन एवं बौद्ध मान्यता में यही सूक्ष्म भेद है कि बौद्ध जिस व्याप्तिग्राहक ज्ञान (तर्क) को पृथक् प्रमाण नहीं मानते हैं वहां जैन दार्शनिकों ने इसे प्रबल तर्कों का आश्रय लेकर पृथक् प्रमाण सिद्ध किया है । जैनदार्शनिकों द्वारा बौद्धों का खण्डन एवं तर्क का प्रमाण रूप में
स्थापन
जैन दार्शनिकों ने तर्क को जो पृथक् प्रमाण के रूप में स्थापित किया है, उसमें उन्होंने बौद्धों का ही खण्डन अधिक किया है। इसका तात्पर्य है कि बौद्धों ने तर्क के स्वरूप का प्रतिपादन तो किया था किन्तु उसे प्रमाण नहीं माना था । व्याप्ति के लिए जिस उपलम्भानुलम्भ पञ्चक का बौद्धों ने प्रतिपादन किया है उसका भी जैनों ने निरसन किया है। अकलङ्क, विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र, वादिदेवसूरि के द्वारा बौद्धों के विरुद्ध दिए गए तर्कों से 'तर्क' का प्रामाण्य सिद्ध होता है। यहां पर प्रायः वे ही तर्क प्रस्तुत हैं जो इन दार्शनिकों ने बौद्धों के विरुद्ध प्रस्तुत किए हैं ।
१५८. तर्कताण्डव (चतुर्थसंपुट), मैसूर विश्वविद्यालय, १९४३, पृ. १४०-१४१ १५९. द्रष्टव्य, प्रथम अध्याय, पादटिप्पण, ३३
१६०. The Buddhist Philosophy of Universal Flux, p. 396 १६१. द्रष्टव्य, चतुर्थ अध्याय, व्याप्ति-विमर्श, पृ. २५९
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