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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
कौटिल्य ने आन्वीक्षिकी को समस्त विद्याओं का दीपक, समस्त कर्मों का उपाय एवं समस्त धर्मों का आश्रय निरूपित किया है। उनके अनुसार यह विद्या त्रयी, वार्ता एवं दण्डनीति के बलाबल का हेतु द्वारा विचार कर लोक का उपकार करती है, विपत्ति एवं अभ्युदय में मनुष्य की बुद्धि को स्थिर करती है।
आन्वीक्षिकी में हेतुओं का प्राबल्य होने से इसे हेतुविद्या या हेतुशास्त्र भी कहा गया। परिषद् में सद् असद् का निर्णय करने हेतु इसका उपयोग करने से इस विद्या को तर्कविद्या या वाद नाम भी दिये गये ।' वादविद्या अथवा तर्कविद्या के द्वारा प्रमेयों को सिद्ध किए जाने से इसका नाम प्रमाणशास्त्र हुआ । प्रमाणशास्त्र या प्रमाणविद्या के लिए भारतीय दर्शन में बहुधा 'न्याय' शब्द का प्रयोग हुआ है।' पाश्चात्त्य दर्शन में प्रमाणमीमांसा के लिए Epistemology (एपिस्टिमोलाजी) शब्द निकटतम है ।
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भारतीय दर्शन में 'प्रमाण' शब्द का अन्तर्भाव करने वाले अनेक प्रमाणशास्त्रीय ग्रंथों का निर्माण हुआ है और उन ग्रन्थों में से अधिकांश या तो जैनों द्वारा लिखे गए हैं या बौद्धों द्वारा निर्मित हैं, यथाप्रमाणविध्वंसन (नागार्जुन) प्रमाणसमुच्चय (दिङ्नाग) प्रमाणवार्तिक एवं प्रमाणविनिश्चय (धर्मकीर्ति), प्रमाणवार्तिकालङ्कार (प्रज्ञाकरगुप्त ), प्रमाणसङ्ग्रह (अकलङ्क), प्रमाणपरीक्षा (विद्यानन्द), प्रमाणनिर्णय (वादिराज) प्रमाणनयतत्त्वालोक (वादिदेवसूरि), प्रमाणमीमांसा (हेमचन्द्र) आदि ।
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प्रस्तुत ग्रन्थ बौद्ध एवं जैन सम्मत प्रमाणचर्चा से सम्बद्ध है, यह मात्र पंचावयव वाक्य रूप न्याय" के सीमित क्षेत्र का अवगाहक नहीं है, अतः प्रस्तुत प्रसंग में न्याय की अपेक्षा प्रमाणमीमांसा शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रमाणमीमांसा में न्याय का भी अन्तर्भाव हो गया है।
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प्रमाण का प्रयोजन - समस्त प्रमेय पदार्थों का ज्ञान प्रमाण द्वारा होता है । प्रमाण के अभाव में प्रमेय अर्थ का ज्ञान संभव नहीं । १२ इसीलिए भारतीय दर्शनों में एक मत से स्वीकारा गया‘मानाधीना मेयसिद्धिः' अर्थात् प्रमेय अर्थ की सिद्धि प्रमाण के अधीन है। सांख्यदर्शन में ईश्वरकृष्ण
६. प्रदीपः सर्वविद्यानामुपायः सर्वकर्मणाम् ।
आश्रयः सर्वधर्माणां शश्वदान्वीक्षिकी मता ॥ - कौटिलीय अर्थशास्त्र, १.१.७, पृ. ११
७. बल बले चैतासां हेतुभिरन्वीक्षमाणान्वीक्षिकी लोकस्योपकरोति, व्यसनेऽभ्युदये च बुद्धिमवस्थापयति, प्रज्ञा वाक्यक्रियावैशारद्यं च करोति । - कौटिलीय अर्थशास्त्र १.२.६, पृ. ११
८. वसुबन्धु के वादविधि आदि ग्रंथ इसके निदर्शन हैं।
९. प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्यायः । - न्यायभाष्य, १.१.१., पृ० ८
१०. B.K. Matilal, Perception, p. 23
११. तेषु प्रमाणसमवायः आगमः प्रतिज्ञा । हेतुरनुमानम् । उदाहरणं प्रत्यक्षम् । उपनयनमुपमानम् । सर्वेषामेकार्थसमवाये सामर्थ्य प्रदर्शनं निगमनमिति । सोऽयं परमो न्याय इति । - न्यायभाष्य, १. १. १. पृ. ११
१२. प्रमाणमन्तरेण नार्थप्रतिपत्तिः - न्यायभाष्य, पृ. २
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