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पंचम अध्याय स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क एवं आगम का प्रामाण्य
तथा अपोह-विचार प्रमाण-संख्या
बौद्ध एवं जैन दोनों दर्शन संख्या की दृष्टि से यद्यपि दो ही प्रमाण स्वीकार करते हैं,तथापि उनमें गहरा मतभेद है । बौद्धों के अनुसार प्रत्यक्ष एवं अनुमान ये दो प्रमाण हैं ,जबकि जैन दार्शनिक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष के रूप में प्रमाण-द्वय का कथन करके परोक्ष-प्रमाण के अन्तर्गत स्मृति,प्रत्यभिज्ञान,तर्क, अनुमान एवं आगम इन पांच प्रमाणों का समावेश कर लेते हैं. इस प्रकार जैन मत में प्रत्यक्ष सहित प्रमाणों की संख्या छह हो जाती है । इनमें प्रत्यक्ष एवं अनुमान तो दोनों सम्प्रदायों को स्वीकृत हैं,किन्तु स्मृति,प्रत्यभिज्ञान एवं तर्क का प्रामाण्य जैन दार्शनिकों को अभीष्ट है बौद्धों को नहीं। आगम या शब्द का प्रामाण्य बौद्धों ने भी स्वीकार किया है किन्तु वे इसका अनुमान-प्रमाण में ही अन्तर्भाव कर लेते हैं,पृथक् प्रमाण के रूप में स्थान नहीं देते । जैन दार्शनिकों ने आगम को अनुमान से पृथक् प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है।
बौद्ध एवं जैन न्याय का विकास गौतम प्रणीत न्यायसूत्र के अनन्तर हुआ है। यही कारण है कि बौद्ध ग्रंथ उपायह्रदय में तथा जैनागम अनुयोगद्वार, भगवती एवं स्थानाङ्गसूत्र में गौतम द्वारा निरूपित प्रमाण के चार भेदों को ही अपनाया गया है। वे चार भेद हैं - प्रत्यक्ष,अनुमान,उपमान और शब्द। बौद्ध दार्शनिक दिङ्नाग के ग्रंथों में प्रमाण के स्पष्ट रूप से दो भेद निरूपित हैं - प्रत्यक्ष एवं अनुमान । दिङ्नाग के उत्तरवर्ती धर्मकीर्ति, शान्तरक्षित, कमलशील आदि बौद्ध दार्शनिकों ने इन्हीं दो भेदों को
अपनाया है। जैनदर्शन में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भेदों का कथन नन्दीसूत्र, उमास्वाति के तत्वार्थसूत्र, सिद्धसेन के न्यायावतार, आदि में मिलता है,किन्तु परोक्ष प्रमाण के स्मृति,प्रत्यभिज्ञान,तर्क,अनुमान
१. प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणं द्विलक्षणम्।-दिङ्नाग, प्रमाणसमुच्चय, १.२ २.(१) तत्प्रमाणे । आद्ये परोक्षम् । प्रत्यक्षमन्यत्।-तत्त्वार्थसूत्र , १.१०-१२
(२) तद् द्विभेदं प्रत्यक्षं च परोक्षं च ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, २.१ ३. स्मरणप्रत्यभिज्ञानतर्कानमानागमभेदतस्तत् पंचप्रकारम् ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.२ ४. शाब्देऽप्यभिप्रायनिवेदनात् । प्रामाण्यं तत्र शब्दस्य।-प्रमाणवार्तिक, १.३-४ ५. न प्रमाणान्तरं शाब्दमनुमानात् तथा हि सः ।-दिङ्नाग, उद्धृत, तत्त्वसंग्रहपञ्जिका, पृ० ५३९ ६. चतुर्विधं प्रमाणम् । प्रत्यक्षमनुमानमुपमानमागमश्चेति ।-उपायहृदय, पृ०१३ ७.(१) द्रष्टव्य, अनुयोगद्वार सूत्र, ज्ञानगुण प्रमाणद्वार। (२) पमाणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, ___ आगमे ।-भगवतीसूत्र, ५.३.१९२ (३) अहवा हेऊ चउबिहे पण्णते तंजहा पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे ।
-स्थानांगसूत्र, ४३० (४) द्रष्टव्य, अध्याय २, पादटिप्पण ४९-५० ८. प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दाःप्रमाणानि ।-न्यायसूत्र, १.१.३ ९. नन्दीसूत्र में ज्ञान को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दो भागों में विभक्त किया गया है, यथा-तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-पच्चक्ख
च परोक्खं च ।-नन्दीसूत्र, २ १०. द्रष्टव्य, उपर्युक्त पादटिप्पण, २ ११. प्रत्यक्षं च परोक्षं च द्विधा मेयविनिश्चयात्।-न्यायावतार, १
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