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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
कारण वादी का निग्रह हो जाता है । प्रभाचन्द्र बौद्धों की इस मान्यता का खण्डन करने हेतु नैयायिकों द्वारा सम्मत पांचरूप्य का आश्रय लेते हैं एवं कहते हैं कि बौद्धों के समान पंचावयवप्रयोगवादी नैयायिक भी कह सकते हैं कि साधन रूप सिद्धि का अंगपांच अवयवों का प्रयोग है । यदि बौद्ध इन पांच अवयवों का प्रयोग नहीं करता है तो उसका भी निग्रह समझना चाहिए।१३ नैयायिकों के अनुसार अनुमानवाक्य के पांच अवयव हैं-प्रतिज्ञा,हेतु,उदाहरण,उपनय एवं निगमन । बौद्ध इनमें से हेतु को ही अनुमान वाक्य का अंग मानता है । अतः अन्य के प्रयोग को आवश्यक न मानने के कारण वह नैयायिक द्वारा पराजित समझा जा सकता है।
बौद्ध प्रत्युत्तर देते हुए प्रतिपादित करते हैं कि पंच अवयवों का कथन करने पर भी निग्रह नहीं होगा,क्योंकि प्रतिज्ञा एवं निगमन का पक्षधर्म के उपसंहार की सामर्थ्य से ज्ञान हो जाता है । जब वे दोनों पक्षधर्मोपसंहार के सामर्थ्य से गम्यमान हैं तो इनका कथन करने पर पुनरुक्ता दोष आता है। इनका प्रयोग करने पर भी यदि हेतु प्रयोग न किया जाय तो साध्य अर्थ की सिद्धि नहीं हो सकती। यदि प्रतिज्ञा से साध्य सिद्धि होती है तो हेतु आदि का कथन व्यर्थ है,और यदि प्रतिज्ञा से साध्यसिद्धि नहीं होती है तो उसको साध्यसिद्धि का अंग नहीं मानना चाहिए।
प्रभाचन्द्र कहते हैं कि बौद्ध मत में भी यदि हेतु से साध्य की सिद्धि हो जाती है तो दृष्टान्त का प्रयोग निरर्थक है। यदि हेतु से साध्यसिद्धि नहीं होती है तो उसे भी साध्यसिद्धि का अंग नहीं मानना चाहिए। यदि बौद्धों के अनुसार साध्य और साधन की व्याप्ति दिखाने वाला होने से दृष्टान्त का प्रयोग निरर्थक नहीं है तथा साध्य-साधन की व्याप्ति नहीं दिखाई जाने पर हेतु साध्य का गमक नहीं हो सकता है तो प्रभाचन्द्र इसका निरसन करते हुए कहते हैं कि बौद्ध कथन असंगत है,क्योंकि “सर्व क्षणिकं सत्त्वात्" इस हेतु में सबको अनित्य सिद्ध करने पर दृष्टान्त का अभाव होने से सत्त्वादि हेतु भी अगमक हो जायेगा। यदि सत्त्व हेतु विपक्ष (नित्य)से व्यावृत्त है अतः विपक्षव्यावृत्ति के कारण साध्य का गमक बन जाता है तो इस प्रकार सभी हेतु साध्य के गमक बन जायेंगें और दृष्टान्त व्यर्थ सिद्ध हो जाएगा। विपक्ष की व्यावृत्ति से हेतु का समर्थन करते हुए भी प्रतिज्ञा का निराकरण करना उचित नहीं है क्योंकि प्रतिज्ञा के अभाव में साध्य एवं हेतु कहां रहेंगे? यदि प्रतिज्ञा गम्यमान रहती है तो उसमें रहा हेतु भी गम्यमान होना चाहिए । यदि गम्यमान हेतु का मंदमति पुरुषों के लिए कथन किया जाता है तो इसी प्रकार प्रतिज्ञा का भी मंदमति पुरुषों के लिए कथन करना चाहिए।
'असाधनांग' शब्द का भिन्न प्रयोग प्रस्तुत करते हुए प्रभाचन्द्र ने इसे बौद्धग्रन्थ वादन्याय से पुष्ट किया है-“साधर्म्यपूर्वक हेतु का कथन करने में वैधर्म्य कथन गम्यमान रहता है तथा वैधर्म्यपूर्वक हेतु का कथन करने पर साधर्म्य कथन गम्यमान रहता है,अतः साधर्म्य का कथन करने पर पुनः वैधर्म्य का कथन करना एवं वैधर्म्य का कथन करने पर पुनः साधर्म्य का कथन करता पुनरुक्ततादोष युक्त
४१३. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग-३, पृ.६४१
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