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अनुमान-प्रमाण
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की आवश्यकता बतलाते हुए माणिक्यनन्दी कहते हैं कि साध्यधर्म से युक्त धर्मी में साधनधर्म का ज्ञान कराने के लिए जिस प्रकार न्यायदर्शन में पक्षधर्म के उपसंहार रूप उपनय का प्रयोग किया जाता है,उसी प्रकार साध्य का धर्मी के साथ सम्बन्ध बताने के लिए भी पक्ष का प्रयोग करना आवश्यक है।३६७ बौद्धों पर आक्षेप करते हुए माणिक्यनन्दी कहते हैं कि कौन ऐसा वादी अथवा प्रतिवादी होगा जो स्वभाव,कार्य एवं अनुपलब्धि के भेद से तीन प्रकार के हेतु का कथन करके उनका समर्थन करता हुआ भी पक्ष का प्रयोग न करे? अर्थात् पक्ष-प्रयोग नितान्त आवश्यक है ।३६८ हेतु के असिद्धादि दोषों का परिहार कर साध्य को सिद्ध करने हेतु पक्ष का आलम्बन लेना ही पड़ता है । माणिक्यनन्दी के इन तर्कों का प्रयोग वादिदेवसूरि ने भी किया है तथा अनुमानवाक्य में पक्षप्रयोग की आवश्यकता प्रतिपादित की है।३६९
प्रभाचन्द्र पक्षवचन की आवश्यकता का प्रतिपादन करने हेतु बौद्धों से प्रश्न करते हैं कि बौद्ध दार्शनिक पक्षवचन का प्रयोग आवश्यक क्यों नहीं मानते हैं ? साध्य की सिद्धि में प्रतिबंधक होने के कारण अथवा प्रयोजन का अभाव होने से? वे इन दोनों प्रश्नों का प्रत्युत्तर देते हुए कहते हैं कि पक्षवचन,साध्य की सिद्धि में बाधक नहीं है,क्योंकि वादी के द्वारा जब साध्य के अविनाभावी हेतु से अपने पक्ष की सिद्धि की जाती है तो पक्ष का प्रयोग साध्य की सिद्धि में बाधक नहीं हो सकता,अपितु उससे प्रतिपक्ष असिद्ध हो जाता है। द्वितीयपक्ष भी युक्त नहीं है,क्योंकि पक्ष प्रयोग प्रयोजन युक्त हैं। पक्ष-प्रयोग से प्रतिपाद्य पुरुष को प्रतिपत्ति होती हैं तथा पक्ष प्रयोग नहीं करने पर मन्दबुद्धि लोगों को प्रकृत अर्थ की प्रतिपत्ति नहीं हो पाती है। जो व्युत्पन्न लोग पक्षप्रयोग के बिना भी प्रकृत साध्य अर्थ की प्रतिपत्ति कर लेते हैं उनके लिए तो पक्षप्रयोग न करना जैनों को भी अभीष्ट है,जैसा कि कहा है - प्रतिपाद्य पुरुष के अनुसार परार्थानुमान के अवयवों का प्रयोग करना चाहिए । २७° अतःगम्यमान पक्ष का भी प्रयोग करना उचित है,अन्यथा शास्त्र के प्रारम्भ में भी प्रतिज्ञा का प्रयोग करना संभव नहीं हो सकता । बौद्ध -शास्त्रों में नियतकथा के प्रसंग में यहां अग्नि है,धूम होने से, यह वृक्ष है ,शिंशपा होने से' आदि वाक्यों में पक्ष का प्रयोग उपलब्ध होता ही है, अतः उसका प्रतिषेध नहीं किया जा सकता। यदि शास्त्र में प्रतिपाद्य के अनुग्रहार्थ प्रतिज्ञा प्रयोगयुक्त है तो वाद में भी प्रतिज्ञा (पक्ष) प्रयोग को युक्त मानना चाहिए । त्रिविध हेतु का कथन कर बौद्ध उसका समर्थन करते हैं अत: यह कैसे हो सकता है कि वे पक्षप्रयोग को अंगीकार न करें । हेतु का कथन पक्षवचन के बिना संभव नहीं है,यदि गम्यमान पक्ष में हेतु का प्रवर्तन होता है तो इसी प्रकार गम्यमान हेतु का भी समर्थन होना चाहिए । अर्थात् हेतु का कथन करने की भी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। यदि मन्दमति को समझाने के
३६७. साध्यधर्मिणि साधनधर्मावबोधाय पक्षधर्मोपसंहारवचनवत् ।- परीक्षामुख, ३.३१ ३६८. को वा त्रिधा हेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ।-परीक्षामुख, ३.३२ ३६९. (१) साध्यस्य प्रतिनियतधर्मिधर्महतोरुपसंहारवचनवत् पक्षप्रयोगोऽप्यवश्यमाश्रयितव्यः ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक,
३.२४(२) त्रिविधं साधनमभिधायैव तत्समर्थनं विदधानः कः खल न पक्षप्रयोगमड़ीकुरुते ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक,
३.२५ ३७०. द्रष्टव्य, यही अध्याय, पादटिप्पण ३४४
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