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________________ अनुमान-प्रमाण २७५ उल्लेख किया है ।३३३ दो अवयवों में वे प्रतिज्ञा एवं हेतु को अथवा प्रतिज्ञा एवं उदाहरण को सम्मिलित करते हैं। पंचावयवों में उन्होंने न्यायदर्शन की भांति प्रतिज्ञा,हेतु, दृष्टान्त,उपसंहार एवं निगमन का समावेश किया है। दशावयवों का उल्लेख वे दो प्रकार से करते हैं । प्रथम प्रकार में १ प्रतिज्ञा २. प्रतिज्ञाविशुद्धि ३.हेतु ४.हेतुविशुद्धि ५. दृष्टान्त ६.दृष्टान्तविशुद्धि ७.उपसंहार ८.उपसंहारविशुद्धि ९. निगमन एवं १०. निगमनविशुद्धि को स्वीकार करते हैं तथा द्वितीय प्रकार में १. प्रतिज्ञा, २. प्रतिज्ञाविभक्ति, ३. हेतु, ४. हेतुविभक्ति, ५. विपक्ष,६. विपक्षप्रतिषेध,७. दृष्टान्त,८. आशंका,९. आशंकाप्रतिषेध एवं १०.निगमन को निरूपित करते हैं।३३४ २-दो अवयव सिद्धसेन ,३३५ अकलङ्क ३३६ विद्यानन्द ३३७ माणिक्यनन्दी ,३३८ देवसूरि ३३९ हेमचन्द्र ३४° आदि ने पक्ष एवं हेतु इन दो अवयवों का विशद प्रतिपादन किया हैं। जैनदार्शनिकों ने व्युत्पन्न प्रतिपाद्य के लिए ही इन दो अवयवों को स्वीकार किया है, अव्युत्पन्नों के लिए नहीं । बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति आदि पक्ष को अनुमान का अवयव नहीं मानते हैं। उनकी इस मान्यता का जैनदार्शनिकों ने बलपूर्वक खण्डन किया है तथा पक्ष को भी अनुमान का अवयव सिद्ध किया है। ३- पंचावयव - यदि प्रतिपाद्य पुरुष अव्युत्पन्न हो तो उसके लिए प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टान्त, उपनय एवं निगमन इन पांचों अवयवों का उपादान किया जा सकता है । माणिक्यनन्दी एवं देवसूरि के ग्रंथों में इसका स्पष्ट प्रतिपादन है ।३४१ । इनके अतिरिक्त एक एवं तीन अवयवों को मानने के भी संकेत मिलते हैं। वादिदेवसूरि ने स्याद्वादरत्नाकर में,बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति की भांति अत्यन्त व्युत्पन्न प्रतिपाद्य पुरुष के लिए एक अवयव हेतु' को ही पर्याप्त माना है ।३४२ दरबारी लाल कोठिया ने गृद्धपिच्छ एवं सिद्धसेन के मत में तीन अवयवों पक्ष,हेतु एवं दृष्टान्त को प्रस्तुत किया है । ३४३ ३३३. दशवकालिकनियुक्ति, गाथा ८९-१३७ एवं गाथा ४९ ३३४. वात्स्यायन के न्यायभाष्य में भी दश अवयवों का उल्लेख मिलता है, किन्तु उनमें कुछ भिन्नता है । पाँच तो गौतम प्रणीत प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय एवं निगमन है तथा अन्य पांच में जिज्ञासा, संशय, शक्यप्राप्ति, प्रयोजन एवं संशयव्युदास हैं । द्रष्टव्य, न्यायभाष्य, १.१.३२, पृ.८० ३३५.द्रष्टव्य,न्यायावतार १३-१६ एवं २० ३३६. जैनतर्कशास्त्र में अनुमान विचार, पृ.१६३ ३३७. साध्यनिर्देशसहितस्यैव हेतोः प्रयोगार्हत्वसमर्थनात् ।- पत्रपरीक्षा, पृ.९ ३३८. एतद्द्यमेवानुमानाङ्गंनोदाहरणम् ।-परीक्षामुख, ३.३७ ३३९. पक्षहेतुवचनलक्षणमवयवद्वयमेव परप्रतिपत्तेरंगं न दृष्टान्तादिवचनम् ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक , ३.२८ ३४०. प्रमाणमीमांसा, २.१.८ १९ ३४१.(१) बालव्युत्पत्त्यर्थ तत्रयोपगमे शास्त्र एवासो, न वादेऽनुपयोगात्।- परीक्षामुख,३.४२ ___ (२) मन्दमतीस्तु व्युत्पादयितुं दृष्टान्तोपनयनिगमनान्यपि प्रयोज्यानि ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.४२ ३४२. अतिव्युत्पन्नमतिप्रतिपाधापेक्षवा पुनधूमोऽत्र दृश्यत इत्यादि हेतुमात्रवचनात्मकमपि तद्भवति। -स्याद्वादरलाकर ३.२३, पृ.५४८ ३४३. द्रष्टव्य, जैन तर्कशास्त्र में अनुमानविचार, पृ. १५९-१६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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