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________________ अनुमान-प्रमाण २६७ नहीं हो सकता। तादात्म्य का अर्थ है-उसका स्वभाव होना। अर्थात् तादात्म्य के द्वारा साध्य के साथ साधन का ऐक्य हो जाना । ऐक्य में भेद की गन्ध भी नहीं होती है और भेद में एकता नहीं होती। अत: तदात्मरूप (वृक्षरूप) होने से शिशपा वृक्ष का गमक कैसे होगा? तादात्म्य से गमक होने पर तो हेतुज्ञान के समय ही साध्य का भी ज्ञान हो जाना चाहिए और तब अनुमान की आवश्यकता ही नहीं रहती। यदि हेतु के ज्ञान की वेला में साध्य ज्ञात नहीं होता है तो फिर उनका तादात्म्य कैसे हुआ? हेतु के प्रतिपन्नत्व (ज्ञान) एवं साध्य के अप्रतिपन्नत्व (अज्ञात) रूप विशुद्ध धर्मों से आक्रान्त होने के कारण उनमें तादात्म्य नहीं कहा जा सकता। स्याद्वादरत्नाकर में वादिदेवसरि ने बौद्धों की ओर से इस सम्बन्ध में उत्तर-प्रत्युत्तर प्रस्तुत किए हैं जो संक्षेपतःउल्लिखित हैंबौद्ध-शिंशपा को देखकर शिंशपा विकल्प उत्पन्न होता है,वृक्ष विकल्प नहीं,क्योंकि तब वृक्ष शब्द को स्मृति का अभाव रहता है । शिशपा शब्द (के संस्कार के प्रबोधक)- की स्मृति से उत्पन्न विकल्प के द्वारा अशिंशपा की व्यावृत्ति की जाती है,अवृक्ष की व्यावृत्ति नहीं । यदि शिंशपा शब्द जन्य विकल्प द्वारा अवृक्ष की भी व्यावृत्ति की जाने लगे तो उसके समस्त विकल्पों के पर्याय होने का प्रसंग आता है अर्थात् वृक्ष की भांति अन्य अंघट अपट आदि की भी व्यावृत्ति करने का प्रसंग आता है । दूसरी बात यह है कि गम्य-गमक भाव इनकी व्यावृत्तियों का होता है,वस्तुओं का नहीं,क्योंकि वस्तुओं में शिंशपा एवं वृक्षशब्द का अन्वय नहीं होता। शिशपा' शब्द-विकल्प के द्वारा अशिंशपा' की व्यावृत्ति की जाती है एवं वृक्ष' शब्द के द्वारा अवृक्ष' की व्यावृत्ति की जाती है- ये दोनों व्यावृत्तियां परस्पर भिन्न है । क्योंकि इनके द्वारा व्यावृत्त वस्तुओं में भी भेद होता है । इसलिए जैनों द्वारा दिया गया यह दोष कि साधन के ज्ञान की वेला में ही साध्य का ज्ञान हो जाना चाहिए उचित नहीं ठहरता है ।२९४ वादिदेवसूरि-यह कथन भी पूर्वापर के अनुसंधान पूर्वक नहीं कहा गया है। साध्य एवं साधनभूत व्यावृत्तियों के तादात्म्य को अनुमान का बीज (कारण) कह कर भी इन दोनों व्यावृत्तियों में परस्पर भेद बताना बौद्धों की महती परामर्शशक्ति का निदर्शन है । यदि वृक्ष एवं शिशपा के तादात्म्य के कारण अध्यवसित अवृक्षव्यावृत्ति तथा अशिंशपाव्यावृत्ति के भिन्न होने पर भी यथाध्यवसाय इनका तादात्म्य है,तो यह भी युक्तियुक्त नहीं है,क्योंकि इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष आता है । यथा-तादात्म्य के सिद्ध होने पर अशिंशपाव्यावृत्ति से अवृक्ष व्यावृत्ति का अध्यवसाय होगा और अवृक्षव्यावृत्ति के अध्यवसित होने पर यथाध्यवसाय तादात्म्य की सिद्धि होगी। यदि व्याप्ति का ज्ञान करने की वेला में एकात्म रूप से अध्यवसित व्यावृत्तियों का तादात्म्य सिद्ध है, तो वह तादात्म्य काल्पनिक ही है। इस प्रकार तो अनुमान भी कल्पना से समारोपित ही होगा। दूसरी बात यह है कि व्यावृत्तियों के २९४. स्याद्वादरत्नाकर, पृ.५३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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