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________________ अनुमान प्रमाण परिणमनशील है, क्योंकि वह कृतक है।” यहां कृतकत्व हेतु व्याप्य है तथा अपने साध्य परिणामित्व को सिद्ध करता है । (२) अविरुद्ध कार्योपलब्धि- साध्य से अविरुद्ध कार्य का सद्भाव । यथा- “इस देही में बुद्धि है, क्योंकि इसमें बुद्धि के कार्य वचनादिक हैं।” यहां पर बुद्धि साध्य है तथा उसका अविरोधी कार्य वचनादि हेतु है । २४१ (३) अविरुद्ध कारणोपलब्धि- साध्याविरोधी कारण का सद्भाव । यथा - "यहां छाया है, क्योंकि छत्र है ।” यहां छाया साध्य का अविरोधी छत्र कारण हेतु है । (४) अविरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि यथा- “एक मुहूर्त पश्चात् शकट नक्षत्र का उदय होगा, क्योंकि अभी कृत्तिका का उदय हुआ है।” यहां कृत्तिकानक्षत्र का उदय शकटनक्षत्र के उदय का पूर्वचर हेतु 1 - (५) अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धि - यथा- “एक मुहूर्त पूर्व भरणि का उदय हो चुका है, क्योंकि अभी कृत्तिका का उदय हुआ है।” यहां कृत्तिका नक्षत्र का उदय भरणि के उदय को सिद्ध करने में उत्तरचर हेतु है । (६) अविरुद्धसहचरोपलब्धि- यथा -" इस आम में रूप है, क्योंकि रस है । ” यहां रस, रूप साध्य का सहचर हेतु है । विरुद्धोपलब्धि (निषेधसाधक विधि) हेतु के ६ भेद - (१) विरुद्ध व्याप्योपलब्धि - साध्य के विरोधी व्याप्य का सद्भाव । यथा - “यहां शीतस्पर्श नहीं है, क्योंकि उष्णता है।” (२) विरुद्धकार्योपलब्धि - इसमें प्रतिषेधात्मक साध्य के विरोधी कार्य का सद्भाव होता है। यथा - "यहां शीतस्पर्श नहीं है, क्योंकि धूम है । " (३) विरुद्धकारणोपलब्धि - यथा "इस प्राणी में सुख नहीं है, क्योंकि इसके हृदय में शल्य है।” (४) विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि - यथा- “ एक मुहूर्त के पश्चात् रोहिणी नक्षत्र का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी रेवती का उदय है।” रेवती नक्षत्र अश्विनी का पूर्वचर है। (५) विरुद्धोत्तरचरोपलब्धि - यथा “एक मुहूर्त पूर्व भरणि का उदय नहीं हुआ है, क्योंकि अभी पुष्य नक्षत्र का उदय हुआ है।” पुष्य नक्षत्र पुनवर्सु का उत्तरचर होता है। (६) विरुद्धसहचरोपलब्धि - यथा- “ इस भित्ति में परभाग का अभाव नहीं है, क्योंकि अर्वाग्भाग दिखाई दे रहा है। " Jain Education International अविरुद्धानुपलब्धि (विधि-साधक निषेध) हेतु के ७ भेद (१) अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि - यथा- "इस भूतल पर घट नहीं है, क्योंकि उपलब्धिलक्षण वाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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