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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
भूत-अभूत - प्रतिषेध हेतु द्वारा विधि या सद्भाव को सिद्ध करना - (१) विरुद्धकार्यानुपलब्धि (२) विरुद्धकारणानुपलब्धि (३) विरुद्धस्वभावानुपलब्धि (४) विरुद्धसहचरानुपलब्धि। अभूत-अभूत - अभाव रूप साध्य को प्रतिषेध हेतु से सिद्ध करना - (१) कार्यानुपलब्धि (२) कारणानुपलब्धि (३) व्यापकानुपलब्धि (४) सहचरानुपलब्धि (५) पूर्वचरानुपलब्धि (६) उत्तरचरानुपलब्धि । इसी प्रकार कारण-कारणानुपलब्धि,व्यापकव्यापकानुपलब्धि आदि परम्परा प्रतिषेध साधक प्रतिषेध हेतु भी हो सकते हैं।
इस प्रकार विद्यानन्द के मत में अनेक हेतु हो सकते हैं,तथापि उन्होंने ३८ हेतु-भेदों को सोदाहरण प्रस्तुत किया है। इनके उदाहरण यहां पर विस्तार भय से नहीं दिये गये हैं।
विद्यानन्द के पश्चात् माणिक्यनन्दी ने हेतु-भेदों पर विशेष चिन्तन कर उन्हें व्यवस्थित रूप दिया है।१८३ माणिक्यनन्दी ने प्रारम्भ में हेतु के दो मूल भेद स्वीकार किये हैं - (१) उपलब्धि और (२) अनुपलब्धि। इन दोनों भेदों का उल्लेख अकल(८५ एवं विद्यानन्द ८६ के द्वारा भी किया गया है। अकलङ्क पूर्णतः उन भेदों के आधार पर विवेचन नहीं करते तथा विद्यानन्द ने इन्हें स्वीकार करते हुए भी भूत-भूत, भूत-अभूत आदि हेतु भेदों को अधिक महत्त्व दिया है। अतः माणिक्यनन्दी को उपलब्धि एवं अनुपलब्धि भेदों को महत्त्व देने वाला प्रथम जैन दार्शनिक कहा जा सकता है । प्रभाचन्द्र लघुअनन्तवीर्य, देवसूरि, हेमचन्द्र आदि उत्तरवर्ती दार्शनिकों ने माणिक्यनन्दी का अनुसरण किया
माणिक्यनन्दी ने उपलब्धि एवं अनुपलब्धि दोनों भेदों को विधि एवं निषेध-साधक के रूप में प्रस्तुत किया है । अतः वे प्रत्येक के दो-दो भेद करते हैं,यथा - उपलब्धिहेतु-(१) अविरुद्धोपलब्धि (विधिसाधक) एवं (२) विरुद्धोपलब्धि (निषेध साधक)। अनुपलब्धिहेतु-(१) अविरुद्धानुपलब्धि (२) विरुद्धानुपलब्धि।
इनमें अविरुद्धोपलब्धि के ६, विरुद्धोपलब्धि के ६, अविरुद्धानुपलब्धि के ७ तथा विरुद्धानुपलब्धि के ३ भेद करके माणिक्यनन्दी ने हेतु के कुल २२ भेदों का प्रतिपादन किया है ।१८७ इन्हें वादी देवसूरि आदि के द्वारा आदृत होने से यहां संक्षेप में सोदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा हैअविरुद्धोपलब्धि (विधिसाधक विधि हेतु) के ६ भेद
(१) अविरुद्ध व्याप्योपलब्धि - साध्य से अविरुद्ध व्याप्य का सद्भाव । यथा - “शब्द
१८३. द्रष्टव्य, परीक्षामुख, ३.५३-३.८९ ।। १८४. स हेतुāधोपलब्ध्यनुपलब्धिभेदात् ।- परीक्षामुख, ३.५३ १८५. द्रष्टव्य प्रमाणसङ्ग्रह में प्रतिपादित भेदों में उपलब्धि एवं अनुपलब्धि शब्दों का प्रयोग, प्रमाणसङ्ग्रह, २९-३१ १८६. द्रष्टव्य, यही अध्याय, पादटिप्पण १७९ १८७. द्रष्टव्य, परीक्षामुख, ३.५५-३.८५
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