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________________ अनुमान प्रमाण जाय तो सहचर हेतु का प्रयोग होता है। यथा - तराजू के एक पलड़े को ऊपर उठा हुआ देखकर दूसरे पड़े के नीचे झुकने का अनुमान । १७८ अकलङ्क द्वारा प्रतिपादित इन हेतु-भेदों को उत्तरवर्ती विद्यानन्द, माणिक्यनन्दी, प्रभाचन्द्र, वादिदेवसूरि, र, हेमचन्द्र आदि समस्त दार्शनिकों ने अपनाया है तथा उन्हें सद्हेतु के रूप में प्रतिष्ठापित किया है, किन्तु इनको सद्हेतु स्वीकार करना कहां तक उचित है, इस सम्बन्ध में आगे विचार किया जायेगा । विद्यानन्द ने विविध प्रकार से हेतु भेदों का निरूपण किया है । साध्य के साथ हेतु का अविनाभावित्व लक्षण होने से वे उसे एक प्रकार का कहते हैं तथा उपलम्भ (विधिसाधन) एवं अनुपलम्भ (प्रतिषेध साधन) के भेद से उसे दो प्रकार का स्वीकार करते हैं । १७९ कार्य, कारण एवं कार्यकारण के भेद से वे विधि एवं निषेध साधन के तीन-तीन प्रकार मानते हैं। १८० वे भूत-भूत, भूत- अभूत, अभूत-भूत तथा अभूत अभूत के भेद से हेतु को चार प्रकार का भी प्रतिपादित करते हैं । १८१ भूत-भूत आदि चार भेदों के वे अनेक भेद प्रतिपादित करते हैं, १८२ यथा २३९ भूत-भूत (विधि साधन) के ६ भेद - (१) कार्यहेतु (२) कारणहेतु (३) व्याप्यहेतु (४) सहचर हेतु (५) पूर्वचरहेतु एवं (६) उत्तरचर हेतु । अभूत- भूत (विधि द्वारा प्रतिषेध को सिद्ध करना) के ६ भेद - (१) विरुद्ध कार्य हेतु (२) विरुद्धकारण (३) विरुद्धव्याप्य (४) विरुद्ध सहचर (५) विरुद्ध पूर्वचर, एवं (६) विरुद्धोत्तरचर हेतु । अभूत-भूत के १६ भेद - परम्परा से कार्य, कारण, व्याप्य एवं सहचर हेतुओं के चार-चार भेद करने से इनके १६ भेद भी अभूतभूत के अन्तर्गत आते हैं। ये १६ भेद हैं - (१) कारणविरुद्धकार्य (२) व्यापकविरुद्ध कार्य (३) कारणव्यापकविरुद्ध कार्य (४) व्यापककारणविरुद्ध कार्य (५) कारणविरुद्धकारण (६) व्यापकविरुद्ध कारण (७) कारणव्यापकविरुद्ध कारण (८) व्यापककारणविरुद्ध कारण (९) कारणविरुद्ध व्याप्य (१०) व्यापकविरुद्ध व्याप्य (११) कारणव्यापकविरुद्धव्याप्य (१२) व्यापककारविरुद्ध व्याप्य (१३) कारणविरुद्ध सहचर (१४) व्यापकविरुद्ध सहचर (१५) कारणव्यापकविरुद्ध सहचर (१६) व्यापककारणविरुद्ध सहचर । इस प्रकार६ साक्षात्-विरोधी और १६ परम्परा विरोधी, कुल २२ भेद अभूत-भूत (प्रतिषेधसाधक विधि) हेतु के हैं 1 १७८. परस्पराविना भूतौ नामोन्नामौ तुलान्तयोः । - सिद्धिविनिश्चय, ६.१५ १७९. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक १.१३.२०९-१० १८०. प्रमाणपरीक्षा, पृ.४९ एवं ५० १८१. वैशेषिक दर्शन में महर्षि कणाद ने भूत-भूत, भूत-अभूत एवं अभूत-भूत इन तीन प्रकार के हेतुओं का उल्लेख किया है । अत: 'अभूत अभूत' नामक चौथा भेद विद्यानन्द की मौलिक देन है। १८२. प्रमाणपरीक्षा, पृ.४९-५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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