SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुमान प्रमाण में समावेश कर लिया है, तथा अनुपलब्धि के भेदों का प्रतिपादन करते समय कुछ वैशिष्ट्य प्रदर्शित किया है, जिस पर आगे विचार किया गया है। इसमें संदेह नहीं कि जैन दार्शनिक हेतु-भेदों का प्रतिपादन करते समय बौद्धों से भी प्रभावित हैं, किन्तु इसमें भी सन्देह नहीं कि उन्होंने हेतु-भेदों के निर्धारण में भारतीयदर्शन को नई देन दी है। अब बौद्ध एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित हेतुओं का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। बौद्धदर्शन में हेतु-भेद बौद्धों के अनुसार स्वभाव, कार्य एवं अनुपलब्धि हेतुओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैस्वभाव हेतु - हेतु की सत्ता मात्र से जब साध्य का ज्ञान होता है तो उसे स्वभाव हेतु कहते हैं । स्वभाव हेतु का उदाहरण है - "यह वृक्ष है, शिंशपा होने से” । १६१ कार्यहेतु- कार्य से कारण का अनुमान कार्यहेतु है। इसका उदाहरण है - "यहां अग्नि है, क्योंकि धूम है" । धूम अग्नि का कार्य है अतः धूम के द्वारा अग्नि का अनुमान कार्य हेतु द्वारा होता है । १६२ अनुपलब्धि हेतु - उपलब्धि के योग्य लक्षण वाला होने पर भी जब कोई अर्थ दिखाई नहीं देता है तो उसकी अनुपलब्धि का ज्ञान अनुपलब्धि हेतु द्वारा किया जाता है। धर्मकीर्ति ने इसका उदाहरण दिया है- “प्रदेश विशेष में घट नहीं है, क्योंकि उपलब्धि के योग्य लक्षण होने पर भी वह उपलब्ध नहीं हो रहा है” | १६३ बौद्धों का अनुपलब्धि हेतु के पीछे तर्क यह है कि उस घट की उपलब्धि के अन्य समस्त कारण विद्यमान होने पर स्वभावविशेष से उसे उपलब्ध होना चाहिए, किन्तु जब अन्य ज्ञानजनक कारणों के विद्यमान होने पर स्वभावविशेष से भूतलादि तो उपलब्ध होते हैं, किन्तु घट उपलब्ध नहीं होता है तो अनुपलब्धि हेतु से उसका वहां अनुपलम्भ जानना चाहिए। २३५ स्वभाव,कार्य एवं अनुपलब्धि नामक तीन हेतुओं में प्रथम दो विधिसाधक हैं तथा अनुपलब्धि हेतु प्रतिषेध साधक है। अनुपलब्धि के हेतु-बिन्दु में तीन, प्रमाणवार्तिक में चार, न्यायबिन्दु में ग्यारह एवं मोक्षाकरगुप्त की तर्क भाषा में सोलह भेद प्रतिपादित हैं। बिन्दु में प्रतिपादित अनुपलब्धि के तीन प्रकार ये हैं- १६४ (१) कारणानुपलब्धि- कारण के अभाव से कार्य की अनुपलब्धि । (२) व्यापकानुपलब्धि - व्यापक के अभाव से व्याप्य की अनुपलब्धि । (३) स्वभावानुपलब्धि - दृश्य की अनुपलब्धि ही स्वभावानुपलब्धि है । १६१. स्वभावः स्वसत्तामात्र भाविनि साध्यधमें हेतुः । यथा वृक्षोऽयं शिशपात्वाद् इति । न्यायबिन्दु २.१५-१६ १६२. कार्य यथा वह्निरत्र धूमादिति :- न्यायबिन्दु, २.१७ १६३. तत्रानुपलब्धिर्यथा- न प्रदेशविशेषे क्वचिद् घटः उपलब्धिलक्षणप्राप्तस्यानुपलब्धेरिति । - न्यायबिन्दु २.१२ १६४. सेयमनुपलब्धिस्त्रिधा । सिद्धे कार्यकारणभावस्य सिद्धा भावस्य कारणस्यानुपलब्धिः व्याप्यव्यापकभावसिद्धौ सिद्धाभावस्य व्यापकस्यानुपलब्धिः स्वभावानुपलब्धिश्च । - हेतुबिन्दु पृ.६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy