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________________ अनुमान-प्रमाण २३३ हेतु और प्रस्तुत करते हैं - 'सर्वमनित्यं सत्त्वात्' अर्थात् ‘सब पदार्थ अनित्य हैं,क्योंकि वे सत्त्व हैं'। समस्त पदार्थों को पक्ष बना लेने के कारण सत्त्व हेतु का कोई सपक्ष नहीं रह जाता है, अतः सत्त्व हेतु सपक्षधर्मता से रहित है,तथापि यह बौद्धों को सद्धेतु के रूप में मान्य है । इससे सिद्ध होता है कि हेतु में सपक्षधर्मता का होना आवश्यक नहीं है । बौद्धों द्वारा प्रतिपादित “सपक्ष एव सत्त्वम्” नियम द्वारा यह स्पष्ट होता है कि हेतु सपक्ष में ही होना चाहिए,विपक्ष में नहीं। अर्थात् जिस हेतु का सपक्ष है तो उस हेतु को सपक्ष में ही होना चाहिए,किन्तु जिस हेतु का सपक्ष नहीं होता उसे सपक्षधर्मत्व के अभाव में भी बौद्ध दार्शनिक संभवतः सद्धेतु मानने का प्रतिषेध नहीं करते हैं। यदि घट आदि को सपक्ष बनाकर अनित्यता की सिद्धि की जाती है तो घट की अनित्यता सिद्ध करने के लिए किसी का सपक्ष में रहना निश्चित रूप से आवश्यक हो सकता है, किन्तु सपक्षाभाव में नहीं, इसलिए जैन दार्शनिकों द्वारा सपक्षसत्त्व को हेतु का असाधारण लक्षण नहीं मानने में कोई दोष प्रतीत नहीं होता है । विपक्ष से सर्वथा असत्त्व जब तक प्रतिपादित न किया जाय तब तक वह भी जैनमत में हेतु का लक्षण नहीं हो सकता। क्योंकि 'सर्वमनित्यं सत्त्वात' आदि अनेक ऐसे हेत हैं जिनमें विपक्षासत्त्व का अभाव है,तथापि वे सद्हेतु हैं अतः विपक्षासत्त्वरूपता के अभाव में भी जैनदर्शनानुसार हेतु कथञ्चित् साध्य का गमक है । विपक्ष में असत्त्व न होने का निर्देश जैन दार्शनिक तब करते हैं जब किसी हेतु के साध्य का विपक्ष ही नहीं हो, अन्यथा उनके मत में साध्याविनाभाव रूप जो हेतुलक्षण है वह हेतु का सर्वथा विपक्षासत्त्व रूप होना ही है । इसलिए बौद्धों द्वारा प्रतिपादित विपक्ष से नियमवती व्यावृत्ति जैनदार्शनिकों को अभीष्ट है,क्योंकि वह अविनाभाव या अन्यथानुपपन्नत्व को ही द्योतित करती है। अतः विपक्ष से नियमवती व्यावृत्ति को जैन दार्शनिक हेतुलक्षण के रूप में स्वीकार करते हुए दिखाई रूप्य के निरसनार्थ जैन दार्शनिकों ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है - 'वह श्याम वर्ण है,उसका पुत्र होने से, उसके अन्य पुत्रों के समान (स श्यामः तत्पुत्रत्वात् इतरतत्पुत्रवत्)।' इस उदाहरण में 'तत्पुत्रत्वात्' हेतु विवादाध्यासित पुत्र रूप पक्ष,उसके अन्य पुत्र रूप सपक्ष में विद्यमान है तथा अन्य स्त्री के गौरवर्ण पुत्र रूप विपक्ष में विद्यमान नहीं है, इस प्रकार इसमें पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व एवं विपक्षासत्त्व ये तीनों रूप विद्यमान हैं तथापि साध्याविनाभाव के न होने के कारण तत्पुत्रत्व हेतु असद्हेतु है। उल्लेखनीय है कि तत्पुत्रत्व हेतु को बौद्धों ने भी असद्हेतु बतलाया है । उनके मत में तत्पुत्रत्व हेतु विपक्ष में सर्वतोव्यावृत्त नहीं है, वह विपक्ष के एकदेश में अर्थात् उस स्त्री के अन्य पुत्रों में भी विद्यमान हो सकता है । विपक्ष से सर्वतो व्यावृत्त नहीं होने के कारण वह हेत्वाभास है । धर्मोत्तर प्रतिपादित करते हैं कि हेतु का लक्षण यह नहीं है कि वह सपक्ष में रहता है एवं विपक्ष में नहीं रहता है। हेतु का लक्षण तो यह है कि हेतु सपक्ष में ही निश्चित रूप से रहता है तथा विपक्ष में उसका न रहना ही निश्चित होता है । अर्थात् वह विपक्ष के एक देश में भी नहीं रह सकता। यदि हेतु का सपक्ष में रहना एवं विपक्ष में न रहना ही हेतु लक्षण माना जाय तो तत्पुत्रत्वात्' हेतु भी सद्धेतु सिद्ध हो जाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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