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अनुमान प्रमाण
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अभयदेवसूरि ने भी बौद्ध हेतुलक्षण पर विचार किया है तथा उसे असम्यक् निर्धारित कर 'अन्यथानुपपन्नत्व' लक्षण वाले हेतु को सम्यक् सिद्ध किया है। अभयदेवसूरि कहते हैं कि 'जिस हेतु में साध्य के साथ अविनाभाव है, उसमें त्रिरूपता अवश्यम्भावी है, अतः त्रैरूप्य ही हेतु का लक्षण है' - बौद्धों की यह मान्यता असमीचीन है 'क्योंकि 'सब पदार्थ अनेकान्त हैं अथवा क्षणिक हैं, सत्त्व होने से' इस वाक्य में अनेकान्तता अथवा क्षणिकता की सिद्धि में दिया गया 'सत्त्व हेतु' सपक्ष रहित है तो भी वह अपने साध्य का गमक है। 'ध्वनि परिणामी अथवा क्षणिक है, श्रावण होने से' इस अनुमानवाक्य में भी श्रावणत्व हेतु अन्वय (सपक्ष) रहित है । अनित्यता के बिना श्रावणत्व संभव नहीं है, क्योंकि नित्य पदार्थ से श्रवणज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता। इसी प्रकार 'समस्त धूम, अग्नि के बिना संभव नहीं है' इस व्याप्ति साधन में भी अन्वय (सपक्ष) संभव नहीं है, और सपक्ष के सिद्ध हुए बिना अभिमत प्रदेश में धूम से अग्नि का निश्चय सर्वत्र असंभव है और तब कार्य एवं स्वभाव हेतु अपने साध्य के गमक नहीं हो सकते । यहां 'घट नहीं है, उपलब्धिलक्षण प्राप्त घट के अनुपलब्ध होने से' इस अनुपलब्धि हेतु में भी दृष्टान्त का अभाव होने से सपक्ष सिद्ध नहीं है। शशश्रृंगादि का दृष्टान्त देने पर तो अनवस्था दोष की प्रसक्ति होती है । १४३
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अन्वय (सपक्ष) के बिना, अविनाभाव मात्र से हेतु को गमक मानते हैं तो बौद्धों का यह कथन कि “ अन्वय के बिना व्यतिरेक साध्य का गमक नहीं होता" खण्डित हो जाता है तथा " यह जीवनयुक्त शरीर निरात्मक नहीं है, प्राणादिमान् होने से ” यह व्यतिरेकी हेतु भी गमक सिद्ध होता है । १४४
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पक्षधर्मत्व लक्षण के अभाव में भी हेतु साध्य का गमक होता है, यथा-“कल सूर्योदय होगा, क्योंकि आज सूर्योदय हुआ है", "समुद्र में ज्वार आया है, क्योंकि चन्द्रमा का उदय दिखाई दे रहा है" इत्यादि प्रयोगों में पक्षधर्मता का अभाव है तथापि ये हेतु अपने साध्य के गमक हैं। यदि काल अथवा देश को उनका पक्ष मानकर पक्षधर्मता स्वीकार करते हैं तो यह बौद्धों को अभीष्ट नहीं है । १४५
अभयदेवसूरि बौद्ध तत्त्वमीमांसा के आधार पर पक्षधर्मत्व लक्षण का खण्डन करते हुए कहते हैं कि बौद्धाभ्युपगत हेतु में पक्षधर्मता संभव नहीं है, क्योंकि सामान्य को अवस्तुरूप मानने के कारण वे शश श्रृंगादि के समान हेतु में पक्षधर्मता नहीं मान सकते, स्वलक्षण को हेतु मानने पर तो पक्ष ही हेतु हो जायेगा अतः उसमें भी पचधर्मता संभव नहीं है। स्वलक्षण के अन्यत्र अनुगम नहीं करने के कारण उसमें सपक्ष भी सिद्ध नहीं होता । १४६
जिस रूप के अनुवाद से हेतु का स्वरूप दिखाई देता है उसी का लक्षण के रूप में कथन करना
१४२. बौद्धों के अनुसार हेतु के तीन भेद है- १. कार्य २. स्वभाव एवं ३. अनुपलब्धि ।
१४३. तत्त्वबोधविधायिनी, पृ.५९०
१४४. तत्त्वबोधविधायिनी, पृ.५९१ १४५. तत्त्वबोधविधायिनी, पृ.५९१ १४६. तत्त्वबोधविधायिनी, पृ.५९१-९२
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