________________
अनुमान-प्रमाण
पात्रस्वामी एक ऐसे दार्शनिक हुए है जिन्होंने बौद्धसम्मत त्रैरूप्य लक्षण का खण्डन कर अन्यथानुपपन्नत्व लक्षण का बलवत् रूप में स्थापन किया है । शान्तरक्षित जैसे बौद्ध तार्किकों को भी पात्रस्वामी के खण्डन का प्रत्युत्तर देने के लिए लेखनी उठानी पड़ी। किन्तु पात्रस्वामी की वह रचना त्रिलक्षणकदर्थन सम्प्रति अनुपलब्ध है। अकलङ्क ने भी साध्य के अभाव में हेतु का होना
अनुपपन्न बतलाया है।०५ अकलङ्क कहते हैं कि साध्य-अर्थ के अभाव में जिसका अभाव होना निश्चित है,ऐसे एक लक्षण वाला हेतु होता है ।१०६ आचार्य विद्यानन्द भी हेतु का अन्यथानुपपन्न लक्षण ही अंगीकार करते हैं तथा उन्होंने जैनाचार्य कुमारनन्दी के हेतुलक्षण को भी उद्धृत किया है,जिसके अनुसार भी अन्यथानुपपत्ति स्वरूप एक लक्षण वाले हेतु को ही स्वीकार किया गया है । १०८
हेतु-लक्षण की यही सरणि माणिक्यनन्दी,देवसूरि,हेमचन्द्रादि उत्तरवर्ती जैनदार्शनिकों द्वारा भी अपनायी गयी है। इन दार्शनिकों ने अकलङ्ककृत निश्चय अथवा निश्चित शब्द के प्रयोग का भी हेतुलक्षण में आदान कर लिया है। यथा माणिक्यनन्दी एवं हेमचन्द्र के अनुसार 'जिसका साध्य के साथ अविनाभावित्व निश्चित हो वह हेतु है ।१०९ देवसूरिके शब्दों में निश्चित अन्यथानुपपत्ति रूप एक लक्षण वाला हेतु होता है । ११०
जैनदार्शनिकों ने इसी लक्षण द्वारा हेतु के अन्वय एवं व्यतिरेक दोनों रूपों का ग्रहण कर लिया है। अन्वय का ग्रहण वे हेतु के तथोपपत्ति रूप द्वारा करते है तथा व्यतिरेक का ग्रहण अन्यथानुपपत्ति रूप द्वारा । साध्य के अभाव में हेतु का अभाव अन्यथानुपपत्ति प्रयोग है तथा साध्य के होने पर ही हेतु का होना तथोपपत्ति प्रयोग है।
जैनदार्शनिकों द्वारा बौद्ध हेतु-लक्षण का खण्डन जैन दार्शनिकों की यह दृढ़ धारणा है कि त्रिरूपता के अभाव में भी हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव हो सकता है तथा त्रिरूपता के सद्भाव में भी हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव नहीं रह पाता है, अतः त्रिरूपता को हेतुका लक्षण नहीं माना जा सकता । हेतु का एक ही लक्षण मान्य है, वह है उसका साध्य के साथ अन्यथानुपपन्नत्व अथवा अविनाभाव । यही तथ्य उनके द्वारा बौद्धों का खण्डन करने से फलित होता है । प्रमुखरूप से जैनाचार्य पात्रस्वामी,अकलङ्क,विद्यानन्द,अभयदेवसूरि, प्रभाचन्द्र,वादिदेवसूरि एवं हेमचन्द्र ने अपने ग्रंथों में बौद्ध हेतुलक्षण का निरसन किया है। पात्रस्वामी
१०४. द्रष्टव्य, तत्त्वसंग्रह, १३६३-१४२८ १०५. साधनं प्रकृताभावेऽनुपपन्नत्वम् ।-प्रमाणसंग्रह, २१, न्यायविनिश्चय, २६९ १०६. साध्यार्थाऽसम्भवाभावनियमनिश्चयैकलक्षणो हेतुः ।-प्रमाणसंग्रहवृत्ति, २१ १०७. तदेवमन्यथानुपपत्तिनियमनिश्चय एवेकं साधनस्य लक्षणं प्रधानम् ।-प्रमाणपरीक्षा, पृ.४९ १०८. अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं लिङ्गमग्यते ।-प्रमाणपरीक्षा, पृ.४९ १०९.(१) साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः।- परीक्षामुख, ३.११
(२) स्वनिश्चितसाध्याविनाभावैकलक्षणात् ।- प्रमाणमीमांसा , १.२.९ ११०. निश्चितान्यथानुपपत्येकलक्षणो हेतुः ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org