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________________ २१६ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा से होने वाले साध्य-ज्ञान को स्वार्थानुमान कहते हुए स्वार्थानुमान की अनेक विशेषताओं का निर्देश किया है, यथा-वह अभिनिबोध स्वरूप विशिष्ट मतिज्ञान है, वह साध्य की ओर अभिमुख एवं अन्यथानुपपन्नत्वरूप नियत लक्षण से उत्पन्न होता है तथा वह तर्कप्रमाण का फल होता है।६३ माणिक्यनन्दी ने भी विद्यानन्द के अनुसार साधन से होने वाले साध्यज्ञान को स्वार्थानुमान कहा है।६४ वादिदेवसूरि ने स्वार्थानुमान का विशेषलक्षण प्रदान किया है, तदनुसार हेतु का प्रत्यक्ष होने पर तथा हेतु एवं साध्य के अविनाभावी सम्बन्ध का स्मरण होने पर साध्य का जो ज्ञान होता है,वह स्वार्थानुमान है।६५ हेमचन्द्र के मत में अपने द्वारा निश्चित साध्याविनाभावी रूप एक लक्षण वाले साधन से साध्य का ज्ञान होना स्वार्थानुमान है । ६६ । ___ इस प्रकार जैन दर्शन के अनुसार हेतु का ग्रहण होने पर साध्य एवं हेतु के अविनाभाव सम्बन्ध या व्याप्ति का स्मरण होता है। उसके अनन्तर तर्कप्रमाण के फल रूप में साध्य का निश्चायक स्वार्थानुमान प्रमाण उदित होता है। स्वार्थानुमान अथवा अनुमान के बौद्ध एवं जैन दर्शनानुसार मुख्यतः दो अंग हैं - साध्य एवं हेतु । साध्य एवं हेतु के साथ व्याप्ति की चर्चा भी जुड़ी हुई है । व्याप्ति एवं पक्षधर्मता को नव्यन्याय युग में अनुमान का आवश्यक अंग माना गया है। यहां पर साध्य एवं हेतु पर विचार करने के अनन्तर व्याप्ति पर विचार किया जायेगा। पक्ष की चर्चा इस अध्याय में परार्थानुमान के प्रसंग में 'पक्षवचनविमर्श के अन्तर्गत आगे की गई है। साध्य - विचार अनुमान-प्रमाण में साध्य का अत्यधिक महत्त्व है। लिङ्ग अथवा साधन द्वारा जिसे सिद्ध किया जाता है, वह साध्य कहलाता है। साध्य को लिङ्गी,व्यापक,गम्य,नियाम्य,आपाद्य आदि भी कहा जाता है । साध्य के लिए अनुमेय' शब्द का भी प्रयोग होता रहा है । जैन एवं बौद्ध दर्शनों में साध्य को अनेक स्थलों पर अनुमेय कहा गया है,किन्तु पक्ष एवं साध्य में सूक्ष्म अन्तर है। साध्य किसी पक्ष में रहता है, किन्तु पक्ष साध्य में नहीं रहता है। अनुमिति के संदर्भ में साध्य के लिए अनुमेय शब्द सर्वथा उपयुक्त है। साध्यविशिष्ट पक्ष अथवा पक्ष में साध्य को सिद्ध करना अनुमेय कहा जाता है। अनुमेय शब्द साध्य का ही द्योतक होता है। अनुमेय या साध्य के सम्बन्ध में लगभग सभी भारतीय दर्शनों ने विचार किया है। न्यायसूत्र के भाष्यकार वात्स्यायन ने साध्य के दो प्रकार बतलाये हैं-धर्मिविशिष्ट धर्म एवं ६३. तदेतत्साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् स्वार्थमभिनिबोधलक्षणं विशिष्टमतिज्ञानम्, साध्यं प्रत्यभिमुखानियमितात् साधनादुपजातस्य बोधस्य तर्कफलस्यामिनिबोध इति संज्ञाप्रतिपादनात् ।-प्रमाणपरीक्षा, पृ.५८ ६४. साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् । स्वार्थमुक्तलक्षणम् ।- परीक्षामुख, ३.१० एवं ५० ६५. तत्र हेतुब्रहणसम्बन्धस्मरणकारणकं साध्यविज्ञानं स्वार्थम् ।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.१० ६६. स्वार्थ स्वनिश्चितसाध्याविनाभावकलक्षणात् साधनात् साध्यज्ञानम् -प्रमाणमीमांसा, १.२.९ ६७. अनुमानस्य दे अंगे व्याप्तिः पक्षधर्मता च ।-केशविमित्र, तर्कभाषा, अनुमान-निरूपण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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