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प्रत्यक्ष-प्रमाण
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का ग्राहक होने से भी प्रत्यक्ष को सविकल्पक प्रतिपादित करते हैं । अभ्यास, दर्शन, पाटव, प्रकरण आदि को अकलङ्कएवं विद्यानन्द की भांति अभयदेव ने भी सविकल्पकज्ञान में ही युक्तिसंगत ठहराया है । अभयदेवसूरि ने अभ्यासदशा में विकल्प निरपेक्ष दर्शन के प्रामाण्य का खण्डन कर सविकल्पक प्रत्यक्ष को ही व्यवहार के लिए संवादक एवं प्रवर्तक माना है । यह ध्यातव्य है कि अभयदेव के मत में ज्ञान के समान निराकार दर्शन का भी प्रामाण्य है ,किन्तु ज्ञान एवं दर्शन को इतराकार से रहित वे प्रमाण नहीं मानते हैं । ३११ प्रभाचन्द्र
प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र एवं प्रमेयकमलमार्तण्ड में बौद्ध निर्विकल्पक प्रत्यक्ष पर पर्याप्त ऊहापोह किया है । प्रभाचन्द्र पर अकलङ्क,विद्यानन्द एवं अभयदेवसूरि का प्रभाव है ,तथापि उन्होंने कल्पना के स्वरूप ,निर्विकल्पक एवं सविकल्पक ज्ञान के एकत्व अध्यवसाय ,निर्विकल्पक ज्ञान द्वारा सविकल्पक ज्ञान की उत्पत्ति आदि विषयों पर विस्तृत एवं गहन चिन्तन कर मौलिक तर्क प्रस्तुत किये
हैं।
बौद्धाभिमत कल्पना का खण्डन
बौद्ध प्रत्यक्ष-लक्षण का खण्डन करने हेतु उद्यत प्रभाचन्द्र ने बौद्धों से प्रश्न किया है कि 'कल्पनापोढ' प्रत्यक्ष-लक्षण में कल्पना' किसे कहा गया है ? प्रतिभास का शब्दयुक्त होना कल्पना है? या निश्चय होना कल्पना है ? जाति आदि का उल्लेख करना कल्पना है अथवा प्रतिभास का अस्पष्ट आकार होना कल्पना है? अर्थ सान्निध्य के बिना प्रतिभास होना कल्पना है? इन्द्रियों के बिना प्रतिभास रूप ज्ञान उत्पन्न होना कल्पना है अथवा तो धर्मान्तर का आरोप करना कल्पना है ? ३१२ कल्पना के इन विविध रूपों को प्रस्तुत कर प्रभाचन्द्र ने केवल दो रूपों को कल्पना स्वीकार किया है-निश्चय होना एवं जाति आदि का उल्लेख करना । प्रभाचन्द्र ने कल्पना के अन्य रूपों का प्रतिषेध किया है। कल्पना का अर्थ प्रभाचन्द्र के मत में विकल्पात्मक अथवा निश्चयात्मक ज्ञान है। उसी आधार पर वे कल्पना के विभिन्न रूपों का प्रतिषेध करते हैं।
प्रभाचन्द्र कहते हैं कि प्रतिभास का शब्द युक्त होना उपपन्न नहीं है । इसलिए अभिलापवती प्रतीति को कल्पना कहना२१३ उचित नहीं है। प्रतिभास स्वभाव से अभिलापयुक्त होता है या अभिलाप का हेतु होने के कारण अभिलापयुक्त होता है ? स्वभाव से प्रतिभास शब्दयुक्त नहीं होता। अर्थ के प्रतिभास में ऐसा कोई स्वभाव नहीं है कि जिससे वह शब्द युक्त उत्पन्न हो । प्रतिभास चेतन होता है तथा शब्द पौद्गलिक होने के कारण अचेतन होता है । चेतन एवं अचेतन में पारस्परिक विरोध ३११. निराकारसाकारोपयोगी तूपसर्जनीकृततदितराकारी स्वविषयावभासकत्वेन प्रवर्तमानौ प्रमाणम्, न तु निरस्तेतराकारी।
- तत्त्वबोधविधायिनी, पृ. ४५८ ३१२. द्रष्टव्य, परिशिष्ट - ख ३१३. अभिलावती प्रतीतिः कल्पना।-शान्तरक्षित, तत्त्वसङ्ग्रह,१२१३
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