________________
प्रत्यक्ष-प्रमाण
१७१
ज्ञान को व्यवहारकर्ता पुरुष सविकल्पक रूप में मानता है तो समस्त ज्ञान सविकल्पक हो जायेगा फलतः बौद्धों का निर्विकल्पक प्रत्यक्षवाद समाप्त हो जायेगा। प्रज्ञाकर(बौद्ध) - जिस प्रकार मणिप्रभा में मणि का ज्ञान जो मैंने मणि देखा, वही प्राप्त हुआ,ऐसा मानने वाले के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण है ।२८९ उसी प्रकार दृश्य एवं प्राप्य में एकत्व का अध्यवसाय होने से निर्विकल्पक ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है। अभयदेव-जिस प्रकार दृश्य परप्राप्य का आरोप करके उसे प्राप्यमानाजाता है उसी प्रकार अविकल्प पर विकल्प का आरोप कर उसे विकल्प क्यों नही मान लेते हैं,क्योंकि दोनों स्थानों पर तुल्य न्याय
बौद्ध- प्राप्य मणिप्रभा एवं मणिप्रतिभास का एकत्व अध्यवसाय होने से मणि प्राप्त होने पर भी उसके प्रतिभास का अभाव नहीं होता । उसी प्रकार सविकल्प एवं निर्विकल्प के एकत्व का अध्यवसाय होने पर भी निर्विकल्पक का अभाव नहीं होता। अभयदेव- यह कथन उचित नहीं है,क्योंकि इस प्रकार तो सांश (सावयव),स्थूल,एवं एक अर्थ के स्पष्ट प्रतिभास से रहित निरंश, क्षणिक,परमाणु प्रतिभास लक्षणयुक्त निर्विकल्प का सविकल्प से ही निर्णय होगा।२९०
अपने इस कथन की पुष्टि में अभयदेवसूरि ने विकल्प द्वारा निर्विकल्प के तिरस्कार की विस्तृत चर्चा की है तथा यह सिद्ध किया है कि विकल्प प्रचुरविषय वाला होने से अथवा निर्णायक होने से बलवान् नहीं होता। अतः विकल्प के द्वारा अविकल्प के तिरस्कार को स्वीकार नहीं किया जा सकता।२९१
यदि सूर्य के द्वारा तारासमूह के तिरस्कार के समान विकल्प से अविकल्प का तिरस्कार हो जाता है ,अतः अविकल्प रूप में निर्णय नहीं होता तब इस प्रकार तो विकल्प का अविकल्प से तिरस्कार मानने पर भी प्रतिभास निर्णय नहीं हो सकता है।
यदि विकल्प बलवान है एवं अविकल्प दुर्बल है अतः विकल्प के द्वारा अविकल्प का तिरस्कार होता है तो विकल्प बलवान् कैसे है ? यदि प्रचुरविषयवाला होने से विकल्प बलवान् है तो यह उचित नहीं है,क्योंकि अविकल्प के विषय में विकल्प की प्रवृत्ति होती है ,अन्यथा विकल्प में गृहीतग्राहित्व दोष असंभव हो जायेगा।
यदि निर्णयात्मक होने से विकल्प बलवान् है तो वह स्वरूप में निर्णयात्मक है या अर्थरूप में ?
२८९ तुलनीय - तस्मान्मणिप्रभायामपि मणिज्ञानम्प्रत्यक्षमेव ।-प्रमाणवार्तिकभाष्य,प.२२०.१९ २९०. द्रष्टव्य, परिशिष्ट-ख २९१. द्रष्टव्य, परिशिष्ट-ख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org