________________
८४
समाधिमरण
जलप्रवेश, गिरिपतन आदि घातक क्रियाओं के द्वारा करता है। जबकि इन समस्त क्रियाओं तथा क्रोधादि के आवेश का समाधिमरण में सर्वथा अभाव रहता है । समाधिमरण शान्ति एवं विवेकपूर्वक देहादिक पदार्थों के प्रति ममत्व का त्याग है, जो जीवन की सम्पूर्णता का एक अंग है। समाधिमरण एक आध्यात्मिक क्रिया है जो आत्म-सुधार एवं आत्मउत्थान का एक अन्तिम एवं सर्वोत्तम विचारपूर्ण यत्न है।९७
न्यायाविद् श्री तूकोल ने समाधिमरण और आत्महत्या के अन्तर पर भलीभाँति विचार किया है। उन्होंने इन दोनों के अन्तर को निम्नलिखित ढंग से व्यक्त किया हैसमाधिमरण करनेवाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से बचने के लिए तथा मोक्ष-प्राप्ति की भावना से ही देहत्याग करता है। मोक्ष-प्राप्ति के लिए समस्त संचित कर्मों का क्षय तथा आगे आनेवाले कर्मों को रोकना होता है। इसके लिए वह दीर्घ समय तक नाना प्रकार के तपों की साधना करता है, जिससे कि उसके कर्मों का क्षय और मन निर्मल हो जाए। लेकिन आत्महत्या व्यक्ति उस समय-विशेष की कुछ परिस्थितियों से बचने के लिए करता है। ये परिस्थितियाँ हैं- अपमान, अपराध, भावनात्मक लगाव आदि इन परिस्थितियों से बचने के लिए वह शीघ्र मृत्यु की कामना करता है। किसी प्रकार की साधना करने की अपेक्षा बाह्य विधियों की सहायता से वह अपना प्राणघात करता है।९८
___ समाधिमरण और आत्महत्या करने की परिस्थितियाँ भी भिन्न हैं। समाधिमरण व्यक्ति मात्र उन परिस्थितियों में प्रसन्नतापूर्वक करता है, जिनमें की जीवनयापन करना कठिन प्रतीत होता है। जैसे- अकाल, भूखमरी, उपसर्ग, वृद्धावस्था, असाध्य रोग आदि के कारण शरीर जर्जरित हो जाने पर धर्म रक्षार्थ व्यक्ति अपना देहत्याग करता है, लेकिन आत्महत्या किसी भी समय किसी भी परिस्थिति में की जाती है। इसके लिए अकाल, उपसर्ग, वृद्धावस्था आदि परिस्थितियाँ अनिवार्य नहीं हैं।९९
___ समाधिमरण करते समय व्यक्ति के मन में सांसारिक वस्तुओं तथा अन्य भौतिक पदार्थों के प्रति जो आसक्ति होती है उससे पूरी तरह मुक्त रहता है। मन को पूरी तरह भावावेश से मुक्त करने के लिए व्यक्ति सभी तरह के संवेगों को छोड़ देता है अर्थात् मन में उत्पन्न होनेवाले संवेगों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। वह राग की पूर्ण समाप्ति के लिए अपने परिवार और मित्र का त्याग करता है और ऐसा करने के लिए उनसे क्षमा माँगता है। आचार्य से अपने गुण-दोषों को कहकर उसकी आलोचना करता है। वह सभी से क्षमा मांगता है और सभी को उसके अपराध के लिए क्षमा प्रदान करता है तथा धर्म में पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करता है। इस तरह सम्यगज्ञान को प्राप्त करके वह समाधिपूर्वक अपना देहत्याग करता है। लेकिन आत्महत्या करनेवाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org