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समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप
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भाव का त्याग कर देता है। अत: समाधिमरण और आत्महत्या में मुख्य अन्तर है- जहाँ आत्महत्या राग-द्वेष से युक्त होती है वही समाधिमरण राग-द्वेष से मुक्त होता है।
डॉ० दरबारीलाल कोठिया के अनुसार ३- आत्महत्या या आत्मघात तीव्र क्रोधादि के आवेश में आकर या अज्ञानतावश शस्त्र-प्रयोग, विषभक्षण, अग्नि-प्रवेश, जल-प्रवेश, गिरि-पात आदि घातक क्रियाओं से किया जाता है, जबकि समाधिमरण में इन क्रियाओं का और क्रोधादिक आवेश का अभाव रहता है। समाधिमरण योजनानुसार शान्तिपूर्वक मरण है जो जीवन सुधार सम्बन्धी सुयोजना का एक अंग है।
_ फुलचन्द वरैया, जैनमित्र में लिखते हैं कि जहाँ राग-द्वेष भाव की उपस्थिति नहीं होती है, वहाँ अहिंसा है और जहाँ राग-द्वेष से युक्त भाव की उपस्थिति होती है, वहाँ हिंसा है। समाधिमरण करनेवाला व्यक्ति राग-द्वेष से मुक्त होकर वीतरागतापूर्वक देहत्याग करता है।९४ अत: उसका देहत्याग हिंसाभाव से मुक्त होता है। लेकिन आत्महत्या करनेवाला व्यक्ति राग-द्वेष से युक्त होकर देहत्याग करता है। अत: उसका यह देहत्याग हिंसा से युक्त होता है। कारण राग-द्वेष से युक्त व्यक्ति प्रमादी होता है और प्रमादवश जो प्राणघात किया जाता है वह हिंसा है।९५ अत: समाधिमरण और आत्महत्या में एक अन्तर यह भी हुआ कि जहाँ समाधिमरण राग-द्वेष-भाव से मुक्त होने के कारण हिंसा से मुक्त होता है, वही आत्महत्या राग-द्वेष से युक्त होने के कारण हिंसा से युक्त होती है।
- फूलचन्द बरैया के अनुसार समाधिमरण और आत्महत्या की विधि में भी अन्तर है। जहाँ आत्महत्या दुःख से छुटकारा पाने की भावना से की जाती है वहीं समाधिमरण प्रीतिपूर्वक या प्रेमपूर्वक किया जाता है। व्यक्ति को जब यह भलीभाँति विदित हो जाता है कि उसका मरणकाल आ चुका है, तब वह निःशल्य नि:कषाय भाव से जीने मरने की अभिलाषा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध आदि की आकांक्षा से रहित होकर समाधिमरण करता है।९६ लेकिन आत्महत्या करनेवाला व्यक्ति मन में विभिन्न तरह की अभिलाषा को संजोए रहता है। उसकी अभिलाषा अगर पूर्ण हो जाती है तो उसे खुशी होती है, अन्यथा दुःख। इसी दुःख के कारण वह अपना प्राणत्याग करता है। अत: समाधिमरण जहाँ प्रीतिपूर्वक निःशल्य नि:कषाय भाव से किया जाता, वहीं आत्महत्या दुःखपूर्वक सशल्य और सकषाय भाव से की जाती है।
आचार्य श्री नानालाल जी महाराज समाधिमरण और आत्महत्या के भेद को स्पष्ट करते हए लिखते हैं कि आत्मघात या आत्महत्या व्यक्ति तीव्र संक्लेश, क्रोधादि के आवेश एवं परेशानियों के वशीभूत हताश होकर अज्ञानतावश शस्त्र-प्रयोग, विषभक्षण, अग्निप्रवेश,
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