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समाधिमरण
समवायांग में बलायमरण पर इस तरह से प्रकाश डाला गया है४- संयम, व्रत, नियमादि धारण किए हुए धर्म से च्युत या पतित होते हुए अव्रत दशा में मरनेवाले जीवों के मरण को बलन्मरण (बलायमरण) कहते हैं।
(११) वसट्टमरण (वशार्तमरण)-इन्द्रिय-विषय-वासनाओं से बुरी तरह प्रभावित होकर जीव का जो मरण होता है वह वसट्टमरण कहलाता है अर्थात् आर्त एवं रौद्रध्यानपूर्वक मरण को वसट्टमरण कहते हैं।
समवायांग में वसट्टमरण पर चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ के अनुसार ६- इन्द्रियविषय-वासनाओं के वश में होकर मरनेवाले जीवों के मरण को वशार्तमरण कहते हैं। इन्द्रिय-विषय-वासनाओं के कारण जीव को पीड़ा होती है, लेकिन वह इस पीड़ा से पीड़ित होकर भी वासनाओं के अधीन ही मरण करता है। जैसे- रात में कीट-पतंगे दीप की ज्योति से आकृष्ट होकर जलकर मरते हैं, उसी प्रकार किसी भी इन्द्रिय के विषय से पीड़ित होकर मरना वसट्टमरण है।
(१२) विप्पाणसमरण (वैहायसमरण)- उपसर्ग (देवकृत या मनुष्यकृत) अपरिहार्य स्थिति न टलनेवाला संकट आदि उपस्थित हो जाए और जीव (व्यक्ति) को यह ज्ञात हो जाए कि उपस्थित संकटापन्न स्थिति से बचना सम्भव नहीं है, उसके धर्म नष्ट होने की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो धर्म की रक्षा के लिए व्यक्ति श्वास रोककर जो मरण करता है वह विप्पाणस (विप्रणाश) मरण कहलाता है।
__ ऐसा प्रतीत होता है की भगवती आराधना में वर्णित विप्पाणसमरण समवायांग में वर्णित वैहायसमरण के समकक्ष है। समवायांग के अनुसार फांसी लगाकर जो मरण किया जाता है, वह वैहायसमरण कहलाता है।८ चूँकि फांसी लगाने की प्रक्रिया में भी व्यक्ति का श्वास अवरूद्ध हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।
(१३) गृद्धपुट्ठमरण - उपसर्गादि तथा संकटापन्न अवस्था में धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र की सहायता से जो मरण किया जाता है वह गृद्धपुट्ठमरण कहलाता है।
समयवांग में गृद्धपुट्ठमरण का अर्थ भगवती आराधना से भिन्न है। इस ग्रन्थ के अनुसार गृद्धपुट्ठ के दो रूप बतलाए गए हैं -
गृद्धस्पृष्टमरण - गिद्ध, चील, पंक्षियों के द्वारा जिसका मांस नोंच-नोंच कर खाया जा रहा हो, ऐसे जीव (व्यक्ति) के मरण को गृद्धस्पृष्टमरण कहा जाता है।
गृद्धपृष्ठमरण-मरे हुए हाथी, ऊँट आदि के शरीर में प्रवेश कर अपने शरीर को
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