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समाधिमरण
(४) आद्यन्तमरण - वर्तमान मरण यदि भावीमरण से असमान होता है तो वह मरण आद्यन्तमरण है। वर्तमान में जिस प्रकार की प्रकृति, स्थिति, अनुभव, आयु आदि द्वारा मरण होता है यदि एक देश या सर्वदेश से उस प्रकार का मरण नहीं होता तो वह आद्यन्तमरण कहलाता है।६२
समवायांग के अनुसार जो जीव नारकादि के वर्तमान आयुकर्म के दलिकों को भोगकर मरता है और मर कर भविष्य में उस आयु को भोगकर नहीं मरता, ऐसे जीव के वर्तमान भव के मरण को आत्यन्तिकमरण (आद्यन्तमरण) कहा जाता है।६३
(५) बालमरण - बाल अर्थात् अज्ञानी, अबोध, मिथ्यादृष्टि, असंयमी आदि के मरण को बालमरण कहा जाता है।६४ समवायांग में अव्यक्त या अविरत जीव को बाल कहा गया है। अत: अविरत, अव्यक्त, असंयमी आदि जीवों का जो मरण होता है, उसे बालमरण कहते हैं। प्रथम गुणस्थान से लेकर चौथे गुणस्थान तक के जीवों का मरण बालमरण कहलाता है।६५
(६) पंडितमरण- ज्ञान, दर्शन, चारित्र से युक्त जीव पंडित कहलाते हैं। ऐसे जीवों के मरण को पंडितमरण कहते हैं। चार प्रकार के पंडित जीव होते हैं६६.
(क) व्यवहारपंडित- लोक, वेद और समय के व्यवहार में निपुण जीव व्यवहारपंडित कहलाते हैं। अत: इनके मरण को व्यवहारपंडितमरण कहते हैं।
(ख) दर्शनपंडित - क्षायिक, क्षयोपशमिक या औपशमिक सम्यग्दर्शन से युक्त जीव दर्शनपंडित कहलाते हैं। ऐसे जीवों के मरण को दर्शनपंडितमरण कहते हैं।
(ग) ज्ञानपंडित- मति आदि पाँच प्रकार के सम्यग्ज्ञान से युक्त जीव ज्ञानपंडित कहलाते हैं। अत: इनके मरण को ज्ञानपंडितमरण कहते हैं।
(घ) चारित्रपंडित- सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यातचारित्र में से किसी एक से युक्त होनेवाले जीव चारित्रपंडित कहलाते हैं। ऐसे जीवों के मरण को चारित्रपंडितमरण कहते हैं।
समवायांग में पंडितमरण पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि संयमी सम्यग्दृष्टि जीव पंडित कहलाता है। ऐसे जीवों के मरण को ही पंडितमरण कहते हैं। छठे से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान से युक्त जीवों का मरण पंडितमरण कहलाता है।६७
(७) ओसण्णमरण - निर्वाण-मार्ग से विचलित हो जानेवाले संयमियों को जब
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