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________________ समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप ७१ पण्डितमरण (५) इंगिनीपंडितमरण, (६) प्रायोपगमन पंडितमरण तथा (७) पंडितपंडितमरण। इनमें भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रयोपगमन ये तीन पण्डितमरण के प्रकार हैं। (१) बाल-बालमरण- यह मरण मिथ्यादृष्टि जीव को होता है। मिथ्यादृष्टि का अर्थ होता है सांसारिक जीवन को सत्य मानना। इस मरण के कारण ही जीवों के जन्ममरण की श्रृंखला बढ़ती है। ये बालजीव पाँच प्रकार के होते हैं३९ - (क) अव्यक्त बाल - इस तरह के बाल जीवों का शरीर धर्म, अर्थ, कामादि पुरुषार्थों को करने में असमर्थ होता है। वस्तुत: ये अविकसित जीव होते हैं। (ख) व्यवहार बाल - ऐसे बाल जीव लौकिक एवं शास्त्रीय व्यवहार को नहीं जानते हैं। (ग) दर्शन बाल - ऐसे बाल जीव तत्त्व श्रद्धान् से रहित मिथ्यादृष्टि होते हैं। (घ) ज्ञान बाल- ऐसे बाल जीव भेद-विज्ञान या सम्यग्ज्ञान से रहित होते हैं। (ङ) चारित्र बाल - ऐसे बाल जीव सम्यक्-चारित्र से रहित अर्थात् अव्रती होते हैं। (२) बालमरण- वे जीव जो सम्यग्दर्शन से तो युक्त हैं, परन्तु सम्यक्-चारित्र से युक्त नहीं होते हैं। ऐसे अविरत सम्यग्दृष्टि जीव के मरण को बालमरण कहते हैं। समाधिमरणोत्साहदीपक में बालमरण का जो निरूपण किया गया है वह उत्तराध्ययन से भिन्न प्रतीत होता है, क्योंकि उत्तराध्ययन में पूर्णत: बाल जीव के मरण का उल्लेख किया गया है जबकि समाधिमरणोत्साहदीपक में बालमरण पूर्ण अज्ञानी जीव का नहीं माना गया है। यहाँ जीव को सम्यग्दर्शन से युक्त माना गया है, लेकिन सम्यक्-चारित्र से भ्रष्ट। (३) बालपंडितमरण १ - देशव्रतों के धारक श्रावकों को बालपण्डित कहा जाता है। ऐसे श्रावक सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान की अपेक्षा ज्ञानी हैं, लेकिन उनका चारित्र अणुव्रत रूप होने से अल्प या बाल ही होता है। अत: ऐसे बालपण्डित जीवों के मरण को ही बालपंडितमरण कहते हैं। (४) भक्तप्रत्याख्यानमरण २ - चारों प्रकार के आहार का त्याग करके प्राण त्यागने को भक्तप्रत्याख्यानमरण कहते हैं । इस मरण को स्वीकार करनेवाला जीव (बहुधा पंडित जीव) मृत्यु की प्रतीक्षा काल में अपने शरीर की देखभाल स्वयं भी करता है और दूसरों के द्वारा भी करवाता है या करवा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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