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समाधिमरण
सत्यता को जानते हुए भी मृत्यु के उपस्थित होने पर उसे अस्वीकार करना ही बालमरण (अकाममरण) है। यहाँ अकाम शब्द उद्देश्यहीन का बोधक माना गया है।
सकाममरण - सकाममरण का सामान्य अर्थ होता है कामना सहित मरण। किन्तु यहाँ सकाम शब्द का यह अर्थ अभीष्ट नहीं है। यहाँ सकाम शब्द का अर्थ हैउद्देश्यपूर्वक या साधनापूर्वक मृत्यु का वरण। इसमें मृत्यु का वरण समभावपूर्वक किया जाता है। मृत्यु के समय व्यक्ति किसी प्रकार का प्रमाद नहीं करता है, अपितु उसकी आत्मा जाग्रत एवं सजग रहती है। यह मरण पंडित जीवों को प्राप्त होता है। इस कारण इसे पंडितमरण भी कहा जाता है। पंडित शब्द का अर्थ ज्ञानी, सत्य को समझनेवाला आदि
से है।
मूलाचार- में आचार्य वट्टकेर ने मरण के विविध रूपों पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार मुख्यरूप से मरण के तीन भेद हैं३७- (१) बालमरण, (२) बालपंडितमरण और (३) पंडितमरण।
बालमरण- असंयत सम्यग्दृष्टि जीव को बाल कहा जाता है। ऐसे बाल जीवों का मरण बालमरण कहलाता है।
बालपंडितमरण - संयतासंयत जीव बालपंडित कहे जाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से विरत नहीं रहने के कारण ये बाल हैं तथा द्वीन्द्रिय जीवों की हिंसा से अलग रहने के कारण ये पंडित कहे जाते हैं। इस प्रकार के जीवों के मरण को बालपंडितमरण कहते हैं।
पंडितमरण - पंडितों का मरण अर्थात् देहत्याग अथवा शरीर का अन्यथारूप होना पंडितमरण है, इसके द्वारा केवल शुद्ध ज्ञान के धारक केवली भगवान् संयतमरण करते हैं। यहाँ संयत शब्द से छठे से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक संयत विवक्षित है। यद्यपि केवली भगवान के मरण को पंडित पंडितमरण कहते हैं, किन्तु यहाँ पर पंडितमरण में ही उसका अन्तर्भाव कर लिया गया है, क्योंकि संयम के स्वामी में सामान्यत: भेद नहीं है। चूंकि संयत जीव पंडित कहे जाते हैं, अत: संयत जीवों का जो मरण होता है, वह पण्डितमरण कहलाता है। यह मरण "केवल शुद्ध ज्ञान" के धारक केवली भगवान करते हैं, क्योंकि केवली भगवान् सभी तरह के ज्ञान से पूर्ण होते हैं। पंडित शब्द यहाँ ज्ञानी के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। समाधिमरणोत्साहदीपक में मरण के सात प्रकारों का उल्लेख मिलता है३८ -
(१) बाल-बालमरण, (२) बालमरण, (३) बालपण्डितमरण, (४) भक्तप्रत्याख्यान
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