________________
समाधिमरण
१३
(५) इंगिनीमरण ३ - इसमें भी आहार त्यागकर प्राण- विसर्जन किया जाता है। लेकिन इस मरण को स्वीकार करनेवाला जीव अपने शरीर की सेवा स्वयं करता है, दूसरों से नहीं करवाता है।
७२
(६) प्रायो (पादो) पगमनमरण" इस मरण को स्वीकार करनेवाला जीव अपनी सभी क्रियाओं का निरोध करके अचल भाव से एक स्थान पर अवस्थित रहकर अपने प्राण का त्याग करता है। वह न तो स्वयं अपने शरीर की सेवा करता है और न दूसरों से ही करवाता है।
-
(७) पण्डित - पण्डितमरण ५ - केवल ज्ञानियों अर्थात् वीतराग एवं सर्वज्ञ के मरण को पंडित - पंडितमरण कहा जाता है। पंडित पंडितमरण जीव एक ही बार करता है, क्योंकि इसके पश्चात् वह जन्म-मरण की परम्परा से मुक्त हो जाता है ।
समाधिमरणोत्साहदीपक में वर्णित इन सात प्रकार के मरणों में से बाल-बालमरण और बालमरण को अशुभ माना गया है । बालपंडितमरण, पंडितमरण एवं इसके तीन भेदों तथा पंडित-पंडितमरण को शुभ माना गया है। इन शुभ मरणों में पंडित - पंडितमरण परम शुभ है, पंडितमरण मध्यम कोटि का शुभ है, जबकि बालपंडितमरण जघन्य शुभ है। इस तरह से इस ग्रन्थ में उत्तम शुभ, मध्यम शुभ तथा जघन्यशुभ के रूप में मरण के विभेद किए गये हैं । ग्रन्थकार ने मरण के इन तीन भेदों द्वारा व्यक्ति को पंडितमरण नामक शुभ मरण प्राप्त करने का परामर्श दिया है। *
४६
४७
व्याख्याप्रज्ञप्ति एवं स्थानांग में प्रारम्भ में मरण के दो विभेद किए गए हैं, तत्पश्चात् पुनः उनका विभाजन किया गया है। इस सभी विभाजनों को जोड़ने पर दोनों आगमों में मरण के कुल प्रकारों की संख्या चौदह हो जाती है ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति में मरण के दो भेद हैं" बालमरण और पंडितमरण, जबकि स्थानांग के अनुसार मरण के दो प्रकार हैं४९- अप्रशस्तमरण और प्रशस्तमरण । पुनः बालमरण एवं अप्रशस्तमरण के बारह-बाहर प्रकार बताए गए हैं तथा पंडित एवं प्रशस्त मरण के दो प्रकार। इस प्रकार भगवती एवं स्थानांग में मरण के चौदह भेद मिलते हैं। उत्तराध्ययननियुक्ति की व्याख्या के अनुक्रम में शान्ताचार्य ने बालमरण के १२ भेदों का उल्लेख किया है, जो निम्न हैं
(क) अप्रशस्त मरण- यह मरण कषाय (तीव्र) के आवेश में होता है। इसके बारह प्रकार हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org