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समाधिमरण जीवधारियों के ये चैत्तसिक गण एक साथ मिलकर या अलग-अलग मृत्यु को आने से रोकते रहते हैं। लेकिन मृत्यु फिर भी आ ही जाती है और यह जीवधारियों के जीवन का अन्त कर देती है।
जर्मनी के जीवविज्ञान के प्रो० अगस्त वीजमैन (August Weismann) ने मृत्यु पर गहराई से अध्ययन किया है। अपने अध्ययन के उपरान्त वे लिखते हैं कि मृत्यु सभी जीवधारियों का गुण है और यह जीवधारियों के जीवन का अन्त करनेवाली एक प्रक्रिया है। अपनी वार्ता के क्रम में वे पुनः लिखते हैं कि बहुत से छोटे-छोटे जीव जो साधारण धृल, आग, पानी, हवा में नष्ट हो जानेवाले होते हैं, अनुकूल परिस्थितियों में लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और जीवन की सभी आवश्यक क्रियाओं का सम्पादन ठीक से करने रहते हैं, लेकिन एक निश्चित समय के बाद वे नष्ट हो जाते हैं। अर्थात् उनकी मृत्यु हो जाती है। वे पुनः लिखते हैं कि मृत्यु जीवन के लिए प्राथमिक आवश्यकता भले ही नहीं हो परन्तु यह गोण या द्वितीय आवश्यकता अवश्य है।"
जीवन और मरण के चक्र को सदैव प्रवर्तित होते रहने के लिए मृत्यु का होना अपरिहार्य है, क्योंकि इस संसार में जीव जन्म ही लेते रहे और उसकी मृत्यु नहीं हो तो सृष्टि का यह चक्र रुक जायेगा। जनसंख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि जीवन जीना दृभर हो जायेगा। जीवनयापन के साधन भी उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। सुखोपभोग के साधन के लिए छीना-झपर्टी होगी। इस संसार में चारों ओर अराजकता का राज्य कायम हो जायेगा, मृत्यु का भय समाप्त हो जायेगा और कोई भी बरे कर्मों से नहीं डरेगा। अच्छे कर्म तथा शुभ विचार लोप हो जायेंगे, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति मृत्यु के भय से ही अच्छे कर्मों का सम्पादन तथा मन में शुभ विचारों का चिन्तन करता है।
यह तो मानी हई बात है कि जन्म लेनेवाला जीव कभी न कभी तो मृत्य को प्राप्त अवश्य करता है। व्यक्ति का शरीर, सभी इन्द्रियाँ आदि पद्गलों के पिण्डकोश हैं। इसमें सड़न-गलन की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से चलती रहती है। शरीर क्रमश: जीर्ण-शीर्ण होता जाता है और एक क्षण ऐसा आता है कि जीव की मृत्यु हो जाती है। दार्शनिकों की मान्यता है कि जीवों का शरीर पाँच भौतिक तत्त्वों के संयोग से बना है। कभी न कभी तो तत्त्वों के इस संयोग में वियोग होगा। जिस क्षण भी इसका वियोग होता है उसी क्षण व्यक्ति या जीव की मृत्यु हो जाती है। दर्शनशास्त्र जहाँ शरीर की रचना को पाँच तत्त्वों का संयोग मानता है, वहीं विज्ञान भी शरीर को भिन्न-भिन्न भौतिक एवं रासायनिक तत्त्वों से मिलकर बना मानता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन तत्त्वों में एक सन्तुलन बना रहता है। इन तत्त्वों के सन्तुलन में जब किसी तरह का बदलाव होता है तो एक प्रकार का विक्षोभ उत्पन्न होता
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