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________________ ६७ समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप धोना पड़ेगा। एक कहानीकार ने राजा को अनाज के गोदाम की कहानी सुनाना प्रारम्भ किया। उसने वर्षों तक एक टिड्डी द्वारा एक अन्न के दाने को गोदाम से बाहर लाने तथा पुनः दूसरी टिड्डी द्वारा अन्न के दूसरे दाने बाहर लाने का शब्द दुहराना प्रारम्भ किया। अन्ततः राजा कहानीकार को अपना राज्य सौंप दिया और टिड्डी दल तथा अनाज के गोदाम से अपना पीछा छुड़ाया। लेकिन यहाँ इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजा के दिमाग में बहुत समय तक टिड्डी दल और अनाज के गोदाम की गूंज गूंजती रही होगी। इसी तरह यदि हमारे सामने भी अनन्तकाल तक जीने की समस्या उपस्थित हो जाए तो हम भी उस राजा की तरह अपना सर्वस्व देकर मृत्यु की कामना करने लगेंगे। मृत्यु आवश्यक होने के साथ-साथ हमारे लिए उपयोगी भी है। क्योंकि मृत्यु के . कारण ही विश्व में जन्म-मरण का चक्र निर्विन चलता रहता है। यदि मृत्यु नहीं होती तो विश्व में नए-नए प्राणियों का जन्म भी नहीं होता। मृत्यु के कारण ही संसार के सभी कार्य ठीक ढंग से क्रियान्वित होते हैं। मृत्यु सभी का परम मित्र है। यह कभी किसी को निराश नहीं करती है। यह व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति दिलाती है। कविवर रविन्द्र के अनुसार मृत्यु जीवन से उतना ही सम्बन्धित है जितना जन्म से। जन्म अगर जीवन प्रभात है तो मृत्यु जीवन की शाम।२८ वाल्स व्हाइटमैन के अनुसार मृत्यु से अधिक सुन्दर कोई घटना नहीं है। वाल्स मृत्यु पर अपनी टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि मृत्यु से डरना व्यर्थ है, क्योंकि यह तो जीवन का एक सर्वोच्च साहसिक अभियान है।२९ जिन लिखते हैं कि मृत्यु से बचा नहीं जा सकता, क्योंकि जीवन के मध्य भी हम मृत्यु में ही होते हैं।३० गांधी जी के अनुसार मृत्यु में किसी तरह का आतंक नहीं होता है, बल्कि मृत्यु तो एक प्रसन्नतापूर्ण निद्रा है जिसके पश्चात् जागरण का आगमन होता है।३१ विज्ञान के अनुसार मृत्यु अनिवार्य तथ्य है। विज्ञान की मान्यता है कि सभी जीवों का शरीर कोशिकाओं (Cells) से बना होता है। कोशिकाओं में विभिन्न तरह की क्रियाओं तथा विभाजन एवं वृद्धि होने के कारण जीवों का शरीर निर्मित होता है। कोशिकाओं का एक सीमा तक विभाजन होना आवश्यक है, क्योंकि कोशिकाएं विभाजित होकर अन्य कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, इससे जीवों के शरीर के अंगों का निर्माण होता है। लेकिन कोशिकाओं का यह विभाजन तीव्रता से तथा निर्धारित सीमा से अधिक होने लगता है तो वह जीव की मृत्यु का कारण बन जाता है।३२ जीवधारियों का यह शरीर विभिन्न प्रकार के जटिल भौतिक एवं रासायनिक पदार्थों से मिलकर बनता है। इसमें गति, चेतना, वृद्धि, आदि चैत्तसिकगुण पाए जाते हैं।३३ जेवियर वाचेट (Xavier Wachet) के अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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