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समाधिमरण
इस तरह यह आगम कुल ३३ अध्ययनों में विभाजित है। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक महान आत्मा का वर्णन है।
प्रथम वर्ग में जालि, मयाली, उपजालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, विहल्ल, वेहायस और अभयकुमार इन दस राजकुमारों का उल्लेख मिलता है । इसमें इन कुमारों के जीवन वृत्तान्त के साथ-साथ उनकी कठोर और उग्र साधना का विवेचन भी किया गया है।
द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढ़दन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुष्पसेन के जीवन वृत्तान्त का वर्णन किया गया है।"
तृतीय वर्ग में धन्यकुमार, सुनक्षत्रकुमार, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिक, पृष्टिमात्रिक, पेढालपुत्र, पोट्टिल और वेहल्ल आदि दश कुमारों का उल्लेख है। इन सभी कुमारों ने समाधिमरण किया था। उत्तराध्ययन
प्राचीन जैन आगम साहित्य में उत्तराध्ययन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कल्पसूत्र (१४६) के अनुसार इसमें संकलित उपदेश श्रमण महावीर के हैं। लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार यह मात्र महावीर के उपदेश का संकलन नहीं है, बल्कि अन्य आचार्यों एवं प्रत्येक बुद्धों के , उपदेश भी इसमें संकलित हैं। वस्तुत: उत्तराध्ययन एक उपदेशात्मक ग्रन्थ है। इसमें धर्म, दर्शन, अध्यात्म, योग आदि से सम्बन्धित सभी सामग्री की प्रचुरता है।
प्रस्तुत आगम में ३६ अध्ययन हैं३९ (१) विनय-श्रुत, (२) परिषह-प्रविभक्ति, (३) चतुरंगीय, (४) असंस्कृत, (५) अकाममरणीय, (६) क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय, (७) उरभ्रीय, (८) कापिलीय, (९) नमिप्रव्रज्या, (१०) द्रुमपत्रक, (११) बहुश्रुत, (१२) हरिकेशीय, (१३) चित्त-संभूतीय, (१४) इषुकारीय, (१५) सभिक्षुक, (१६) ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान, (१७) पापश्रमणीय, (१८) संजयीय, (१९) मृगापुत्रीय, (२०) महानिर्ग्रन्थीय, (२१) समुद्रपालीय, (२२) रथनेमीय, (२३) केशि-गौतमीय, (२४) प्रवचनमाता, (२५) यज्ञीय, (२६) सामाचारी, (२७) खलुंकीय, (२८) मोक्षमार्ग गति, (२९) सम्यक्त्व-पराक्रम, (३०) तपोमार्ग-गति, (३१) चरण-विधि, (३२) अप्रमाद स्थान, (३३) कर्मप्रकृति, (३४) लेश्या, (३५) अनगार-मार्ग-गति और (३६) जीवाजीव-विभक्ति ।
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