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समाधिमरण सम्बन्धी जैन साहित्य उपासकदशांग
उपासकदशांग में श्रावकों के आचरण एवं व्रतों का विवेचन कथानक के रूप में मिलता है। प्रस्तुत ग्रन्थ अंगसूत्रों में एकमात्र ऐसा सूत्र है, जिसमें भगवान् महावीर के समकालीन दस श्रमणोपासकों के जीवन का चित्रण किया गया है और जिन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षण में समाधिमरण किया था।
प्रस्तुत आगम दश अध्ययनों में बंटा है। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक श्रमणोपासक के जीवन-चरित्र का वर्णन मिलता है। उदाहरणस्वरूप प्रथम अध्ययन में आनन्द', द्वितीय अध्ययन में कामदेव ६, तृतीय में चुलनीपिता ७, चतुर्थ में सुरादेव, पंचम में चलनीशतक', षष्ठ में कुंडकौलिक ", सप्तम में सकडालपुत्र, अष्टम में महाशतक, नवम में नन्दिनी पिता तथा दशम में सालिहीपिता की जीवन गाथा का वर्णन है। इन सबों में उनके समाधिमरण ग्रहण करने तथा उन पर होनेवाले उपसर्गों के सहन करने का वर्णन मिलता है।
अन्तकृत्दशा
इस आगम में जीवन-मरण के दु:खों का अन्त कर देनेवाले व्यक्तियों के जीवन वृत्त का वर्णन मिलता है। इस ग्रन्थ में दस अध्ययन हैं। नन्दी में इसके आट वर्गों का उल्लेख है, जबकि समवायांग में दस अध्ययन एवं सात वर्गों का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध तथा आठ वर्ग हैं, जिनमें क्रमश: दस, आठ, तेरह, दस-दस, सोलह, तेरह और दस अध्ययन हैं।२७ छठे, सातवें, आठवें वर्ग में महावीर के समकालीन ३९ उग्र तपस्वियों एवं साध्वियों के समाधिमरण का विवरण मिलता है। सातवें, आठवें वर्ग में सम्राट श्रेणिक की नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा आदि महारानियों के समाधिमरण लेने का विवरण मिलना ९
___अन्तकृत्दशा पर संस्कृत में दो वृत्तियाँ मिलती हैं- एक आचार्य अभयदेव सूरि की और दूसरी आचार्य घासीलाल जी की। अनुत्तरोपपातिकदशा
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का नवां अंग है। इसमें दस अध्ययन हैं। नन्दी में इसके तीन वर्गों का उल्लेख है जबकि स्थानांगरेर में केवल दस अध्ययन का वर्णन है। लेकिन समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग इन दोनों का उल्लेख किया गया है। वर्तमान में यह आगम तीन वर्गों में विभक्त है। इसमें क्रमश: १०, १३ और १० अध्ययन हैं।
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